भेड़िया सीरीज
रेड अलर्ट
अनिल सलूजा
टेलीविजन पर समाचार चल रहे थे।
समाचार वाचक कैमरे की तरफ देखते हुए कह रहा था—
“सरकार को खुफिया सूत्रों से पता चला है कि गंगानगर में हथियारों की बहुत बड़ी खेप पहुंच चुकी है। यह हथियार आतंकवादियों को गणतन्त्र दिवस पर गड़बड़ी फैलाने के इरादे से पाकिस्तान की तरफ से भेजे गये हैं। सरकार ने गंगानगर और आसपास के शहरों में चौकसी बढ़ा दी है...और रेड अलर्ट जारी कर दिया है।”
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उस फ्रैंच-कट दाढ़ी वाले ने रिमोट उठाकर टीoवीo बन्द किया और मुस्कुराते हुए अपने बायीं तरफ बैठे कुर्ता-पायजामा पहने व्यक्ति की तरफ देखा।
“लीजिये...रेड अलर्ट जारी कर दिया है सरकार ने।”
“अरे भैया...सरकार तो हम हैं.....रेड अलर्ट सिर्फ जनता के लिये होता है। सरकार के लिये भला रेड अलर्ट क्या होगा? हा-हा-हा...।”
“अब तो जगह-जगह पड़ने दो छापे... होने दो तलाशी...। कोई फर्क नहीं पड़ता...। नेताओं के घर छापे नहीं पड़ा करते और न ही उनकी तलाशी ली जाती है...। क्योंकि इलेक्शन जीतने के बाद नेता के माथे पर देशभक्त होने का लेबल लग जाता है। अन्दर से वह चाहे पूरे देश को ही क्यों न खा जाये।”
“फिर भी सावधानी जरूरी है नेताजी! सारा गोला-बारूद आपकी कोठी में पड़ा है, जबकि आज ही रात को सारा सामान पूरे शहर में वितरित करना है। ऐसे में अगर हमारे व्हीकलों की तलाशी हो गई तो सारा गुड़गोबर हो जायेगा।”
“तुमसे ज्यादा फिक्र तो मुझे होनी चाहिये रहमान खान...। सीoएमo बनना है मुझे...और यह तभी होगा जब वर्तमान सीoएमo मरेगा... जिसे कि तुमने खत्म करना है।”
“पाकिस्तान भी यही चाहता है कि सीoएमo आप ही बनें।” फ्रैंच-कट दाढ़ी वाला जिसका नाम रहमान खान था, बोला—“आपके सीoएमo बनने से हमें फायदा ही होगा। गंगानगर सरहदी शहर है। आपके सीoएमo बनने के बाद मह बड़े आराम से हिन्दुस्तान में असलाह और दहशत गर्द भेज सकेंगे।”
“तुम फिक्र मत करो... सारा माल सप्लाई हो जायेगा। तुम वह खास जगह बताओ जहां पर कि तुम्हें सबसे ज्यादा माल पहुंचाना है।”
“क्यों...?”
“उस जगह पर सामान मेरी गाड़ी में जायेगा...और मेरी गाड़ी की तलाशी न तो पुलिस ले सकती है और न बीoएसoएफo।”
“पांच किलो आरoडीoएक्सo और चार टाइमर केतवाली के पास पहुंचाने हैं।”
“जहांगीर के घर.....पहुंच जायेंगे...।”
“साथ में दो एoकेo सैंतालीस...।”
नेता हरि सिंह गहलौत ने सिर हिला दिया।
“बाकी के हथियार वगैरह हम खुद पहुंचा लेंगे।” रहमान खान बोला।
“ठीक है—आज रात को माल जहांगीर के पास पहुंच जायेगा।”कहते हुए हरि सिंह गहलौत खड़ा हो गया।
“क्या बात है...? चल भी दिये... बैठिए। दो-दो पैग लगाते हैं।”
“नहीं... आज पार्टी ने मीटिंग बुलाई है...मेरा वहां पहुंचना बहुत जरूरी है। पीने-पिलाने का काम फिर हो जायेगा।”
रहमान खान ने मुस्कुराते हुए सिर हिला दिया।”
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“क्यों मेरा घर बर्बाद करने पर तुले हुए हो...? मेरी एक भूल की इतनी बड़ी सजा मत दो मुझे, विवेक...। अब मैं बाल—बच्चेदार औरत हूं...। मेरा एक लड़का है। प्लीज विवेक मुझ पर तरस खाओ।”
“तरस ही तो खा रहा हूं तुझ पर मेरी जान...। तभी तो हर साल सिर्फ दो लाख ही ले रहा हूं...। अगर तरस न खा रहा होता तो बढ़ती हुई महंगाई के हिसाब से अब तक पांच लाख रुपया हो चुका होता...।
रही बात तुम्हारी भूल की तो उस वक्त वो तुम्हारी भूल नहीं थी। मैं तुमसे सच्चा प्यार करता था। तुम भी तो मुझे दिलो-जान से चाहती थीं। तभी तो हमारे जिस्म एक हुए थे। एक बार नहीं... चार-पांच दफा हमने एक-दूसरे की प्यास बुझाई थी... और मैं हर बार अपने प्यार की निशानी के तौर पर तुम्हारी कुछ नंगी तस्वीरें ऑटोमैतिक कैमरे से ले लेता था, ताकि जब तुम करीब न होवो तो मैं तुम्हारी तस्वीरों को देखकर ही तुमसे प्यार कर लूं। लेकिन तुमने मुझे धोखा दिया। दौलत के लालच में तुमने एक लखपति से शादी कर ली।”
“मैं... मैं मजबूर हो गई थी...।”
“बकवास...।”
“मैं सच कहती हूं, विवेक...! मेरे पापा ने तब धमकी दी थी कि अगर मैंने अश्वनी से शादी नहीं की तो वे सचमुच आत्महत्या कर लेंगे।”
“और तूने अपने बाप की खातिर उससे शादी कर ली।”
“और कर भी क्या सकती थी मैं!”
“कर ही तो रही हो। तीन साल हो गये हैं तेरी शादी को....मुझे छः लाख दे चुकी हो.....आज छः से आठ हो जायेंगे।”
“नहीं....मैं अब तुम्हें एक पैसा भी नहीं दूंगी।”
“बेशक मत दो... लेकिन इतना याद रखना...अगर तुमने मुझे दो लाख नहीं दिया तो कल सुबह सारे गंगानगर की दीवारों पर तेरे हुस्न के दीदार कराती तस्वीरें चिपकी होंगी...जिनके नीचे तेरा नाम...तेरे घरवाले का नाम और तेरा पूरा पता लिखा होगा।”
“नहीं...।”
“ऐसा ही होगा।”
“तु....तुम ऐसा नहीं कर सकते।”
“मुझे अच्छी तरह से जानती है न शिवांगी... मैं जिस चीज को ठान लेता हूं, उसे करके ही रहता हूं...।
“नहीं...।”
“मुझे यकीन है कि तेरी तस्वीरें देखकर अश्वनी तुझे गले से लगा लेगा। उसे इतनी खुशी होगी कि खुशी के मारे उसका हार्टफेल हो जायेगा।”
“मुझ पर तरस खाओ विवेक...।”
“तेरी तस्वीरें किसी और को नहीं दिखा रहा...यह तरस नहीं तो क्या है? बस तुम हर साल दो लाख मेरे मुंह पर मारती रहो...मैं किसी के आगे जुबान तक नहीं खोलूंगा।”
“नहीं...तुम...।”
“बस... अब और बात नहीं...। रात आठ बजे मेरा एक आदमी तेरे घर आयेगा...उसे दो लाख दे देना... अगर नहीं दोगी तो... तुम्हें बता ही चुका हूं कि मैं क्या करूंगा?”
क.....कौन आयेगा...?
“रमेश बतरा होगा उसका नाम...उसने सफेद पैंट-शर्ट पहन रखी होगी...और लाल रंग का कोट पहन रखा होगा। तुम उससे उसका नाम पूछना और रुपया दे देना।”
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