महानायक : Mahanayak

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Description

शहर जल रहा था। सड़कों पर हत्याएँ, बलात्कार और लूट-खसौट रोज का काम हो गया था। शहर में त्रिकाल नामक डॉन का इतना आतंक था कि उसके आदमियों पर पुलिस तक हाथ डालने से डरती थी। त्रिकाल के साथ ही कई और गैंग थे जो शहर में जुर्म का नंगा खेल खेल खेल रहे थे। शहर में छाए जुर्म के अन्धकार को मिटाने के लिए ‘नायक’ की नहीं, ‘महानायक’ की जरुरत थी।

तब...

एक अबला की पुकार पर एक नहीं दो ‘महानायक’ शहर में आए और शहर मुजरिमों की कत्लगाह बन गया।

 

यहां 'महानायक' उसे सम्बोधित किया गया है, कहा गया है, जो साधारण से असाधारण और असाधारण से भी असाधारण है। दरअसल भारतीय सभ्यता और सम्पूर्ण संस्कृति—अपने धार्मिक और ऐतिहासिक पर परिवेश में—'नायक' और 'महानायक' जीवी है। बिना 'नायक' के तो भारतीय जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। नायकत्व की यह स्थापना मनुष्य, समाज तथा देश को प्रेरणा देती है। रामायण काल व महाभारत काल में 'महानायकत्व' राम तथा कृष्ण की जिम्मे आया। राक्षस संस्कृति का 'महानायक' पद रावण व मनुष्य की महत्वाकांक्षाओं, दुर्बलताओं का 'महानायकत्व' पद दुर्योधन ने पाया। यद्यपि बात अजीब है, लेकिन सच है। उदाहरण के लिए फिल्मों को लिया जा सकता है। हीरो फिल्मों का अनिवार्य अंग है वर्ना अभिनेताओं को कोई पूछता भी नहीं। यानी फिल्में बिना 'नायक' के बनती ही नहीं हैं। वास्तव में जीवन में—हर एक का कोई न कोई आदर्श होता है, प्रेरणात्मक तत्व होता है—वही उसके लिए 'नायक' की भूमिका निभाता है। यह कभी प्रत्यक्ष होता है, कभी परोक्ष। बीसवीं सदी में भारतीय जीवन में निर्विवाद, निसंकोच 'महात्मा गांधी' को 'महानायक' कहा जा सकता है—जिनके नेतृत्व और संघर्ष ने देश की गुलामी का लम्बा इतिहास बदल दिया।

अब आइए जासूसी साहित्य में। अगर सीरीज में देखें तो जासूस ही उसका नायक होता है जो धीरे-धीरे अपने पाठकों के मन में अपने कार्यों से 'नायक' और 'महानायक' की छवि स्थापित कर लेता है। यही नहीं, कभी-कभी परिस्थितियोंवश कोई खराब चरित्र प्रतिनायक बन जाता है। यह फिल्मों में भी है, कथाओं में भी तथा जीवन में भी। प्रसिद्ध डकैत मानसिंह का नाम दिमाग में आते ही उसकी डकैत होने की छवि प्रतिनायक के रूप में सामने आती है, और प्रतिनायक नायक के समकक्ष तो होता ही है। जो जासूसी उपन्यासों के पाठक हैं—पुराने हैं—उन्होंने अंग्रेजी से हिन्दी में अनुवादित सेक्सोफोन ब्लेकिन, शरलक होम्स, देवकीनन्दन खत्री, दुर्गा प्रसाद खत्री के मौलिक, फिर एम० एल० पाण्डेय, भविष्य भूषण गौड़ (जो कई नामों से लिखते थे), युगल किशोर पाण्डे के भारतीय जासूसी उपन्यास पढ़े होंगे। उसी के बाद इब्ने सफी, अकरम इलाहाबादी, ओम प्रकाश शर्मा, वेद प्रकाश काम्बोज, रमेश चंद्र गुप्ता 'चंद्रेश', राजभारती, सुरेंद्र मोहन पाठक और बाद की पीढ़ी में परशुराम शर्मा, प्रकाश भारती, वेद प्रकाश शर्मा तथा पेननेम यानी भूतनाम में कर्नल रंजीत आदि के नाम सामने आए। लगभग सभी लेखकों ने जो पात्र सृजित किए—वे नायक की छवि के रूप में पाठकों के मन-मस्तिष्क में चित्र में अंकित हुए। वर्तमान में सुरेंद्र मोहन पाठक का पात्र 'विमल', गौरी पॉकेट बुक्स से प्रकाशित ‘केशव’ पंडित के उपन्यासों का पात्र केशव पंडित—अपनी प्रस्तुति के कारण 'नायक' से अधिक 'महानायक' पद की प्रतिष्ठा पाठकों के मन में प्राप्त कर चुके हैं। इसी प्रकार सुनील प्रभाकर का पात्र बबूना—'नायक' से धीरे-धीरे 'महानायक' बनने की प्रक्रिया है। प्रस्तुत उपन्यास बबूना के 'महानायक' बनने की प्रक्रिया का ठोस मील का पत्थर साबित होगा।

Mahanayak

Sunil Prabhakar सुनील प्रभाकर

 

प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्योंधूम्रपानमधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं।  पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।

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Additional information

Book Title

महानायक : Mahanayak

Isbn No

No of Pages

288

Country Of Orign

India

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Publisher Name

Ravi Pocket Books

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