झूठ का बोलबाला
होटल गेलार्ड के डायनिंग हॉल में टेबल पर बैठा बढ़े हुए पेट वाला करीब चालीस साल का व्यक्ति जिसके गाल फूले हुए थे, मोबाइल कान से लगाये किसी से बात कर रहा था—
”मिल गई.....बिल्कुल वैसी ही है जैसी हमें चाहिये....यहीं है होटल गेलार्ड में....मेरे से कुछ दूर अपने किसी दोस्त या अपने खसम के साथ बैठी खाना खा रही है....अरे यार, तू देखेगा तो यही कहेगा कि वही है....हां, तू जल्दी आ जा....हां-हां....।“
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”तेरे पीछे एक आदमी बैठा है, फोन पर किसी से बात कर रहा है।“
खाने पर गर्दन झुकाये अर्जुन त्यागी धीरे से सामने टेबल के उस तरफ बैठी गौरी से बोला।
गौरी ने इस तरह पीछे देखा, जैसे वह वेटर की तलाश कर रही हो।
सिर्फ आधे सैकिण्ड के लिये उसकी निगाहें उस व्यक्ति पर स्थिर हुईं, फिर वह पुनः खाने पर झुक गई।
टेबल पर डिनर रखा था, जिसमें चिकन तथा चपातियों के अलावा टेबल पर स्कॉच के आधे भरे पैग रखे थे।
”वो काली टी-शर्ट वाला?“ वह बोली।
”हां, वही....।“ अर्जुन त्यागी बोला।
”कौन है वो....?“
”यह तो पता नहीं कि वो कौन है, लेकिन मुझे लगता है कि वो हमें जान गया है कि हम कौन हैं।“
”क्या....?“ गौरी हल्के से चौंकी—”हम कल ही यहां सूरजपुर में आये हैं, और....!“
”क्या सूरजपुर में टी.वी. नहीं चलते, या फिर अखबारें नहीं बिकतीं....। या यहां पत्रिकायें नहीं आतीं, जिनमें हमारी तस्वीरें आती रहती हैं।“
”य....यानि उ....उस आदमी ने हमें पहचान लिया है कि हम हरामी हैं....?“ हड़बड़ा उठी गौरी।
”लगता तो ऐसा ही है। क्योंकि हमारा कोई रिश्तेदार तो वो है नहीं....।“ खाना खाते हुए बोला अर्जुन त्यागी।
”फिर तो यह जरूर पुलिस को फोन कर रहा होगा....। यानि पुलिस कभी भी यहां आ सकती है।“
”नहीं....।“ अर्जुन त्यागी गम्भीरता से बोला—”मुझे नहीं लगता कि वो पुलिस को फोन कर रहा है।“
”कैसे नहीं लगता....?“
”पुलिस को फोन करने वाले के चेहरे पर खौफ या उत्तेजना होती है, जबकि उसके चेहरे पर एक अजीब-सी चमक है, जैसे वह वर्षों से हमें ढूंढ रहा हो, और हम एकाएक उसे मिल गये हों....। ऐसे में आदमी के चेहरे पर जो चमक आती है, वही चमक उसके चेहरे पर है।“
”तेरा सोचना गलत भी तो हो सकता है....।“ गौरी बोली—”इसलिये चुपचाप उठ यहां से और निकल....। अगर वह हमारा पीछा करेगा तो किसी बढ़िया-सी जगह पर धर दबोचेंगे साले को....। फिर पूछेंगे कि वह क्यों हमें वॉच कर रहा था?“
”तू ठीक कह रही है। अपना पैग खाली कर और उठ।“
कहते हुए अर्जुन त्यागी ने अपना पैग उठा लिया।
गौरी ने भी अपना पैग उठा लिया।
दोनों ने अपने-अपने पैग खाली किये और चिकन की ग्रेवी का एक-एक चम्मच मुंह में डालकर खड़े हो गये।
उन्हें खड़ा होते देख काली टी-शर्ट वाले के चेहरे पर हड़बड़ी उभर आई।
उसी हड़बड़ी में उसने पुनः फोन निकाला और फिर से फोन करने लगा।
”वो जा रहे हैं....खाना बीच में छोड़ दिया है उन्होंने....। लगता है उन्हें मुझ पर सन्देह हो गया है....जल्दी पहुंचो....हां, मैं ईयरफोन कान से लगा लेता हूं....ठीक है।“
कहकर वह उन्हें देखते हुए अपनी जेब से ईयरफोन निकालने लगा।
जब तक वह ईयरफोन की तार मोबाइल में लगाकर ईयरफोन को कान में लगाता....अर्जुन त्यागी और गौरी काऊण्टर तक पहुंच चुके थे।
तुरन्त वह खड़ा हुआ और काऊण्टर की तरफ बढ़ा।
”वो बिल दे रहे हैं।“ वह धीरे से बोला।
”तुम लड़की के पीछे रहना....। वो किसी भी सूरत में नहीं निकलनी चाहिये।“ उसके कान में आवाज पड़ी, ”हम बस पहुंच ही रहे हैं।“
उधर अर्जुन त्यागी और गौरी के टेबल पर पहुंचने पर तुरन्त उन्हें सर्व कर रहा वेटर भी वहां पहुंच गया।
”आपने खाना बीच में छोड़ दिया सर!“ वेटर बड़े ही अदब से बोला—”अगर कोई कमी है तो....!“
”नहीं....।“ अर्जुन त्यागी बीच में ही बोल पड़ा—”खाना बहुत अच्छा बना था।“
”हमें एक जरूरी काम के लिये कहीं जाना है।“ गौरी बोली—”इसलिये हमें खाना बीच में छोड़ना पड़ा।“
”आप प्लीज बिल बताइये....।“ अर्जुन त्यागी बोला—”हम लेट हो रहे हैं।“
”यस सर!“
कहकर वेटर ने काऊण्टरमैन को जल्दी-जल्दी बताया कि उसने क्या-क्या सर्व किया है।
काऊण्टरमैन ने बिल बनाया तो अर्जुन त्यागी ने जल्दी से पैसे निकालकर बिल पे किया और दोनों गेट की तरफ बढ़ गये।
”वो आ रहा है।“ गौरी धीरे से फुसफुसाई।
”जानता हूं....। तू उधर मत देख....। मैं देख रहा हूं।“ अर्जुन त्यागी गेट की तरफ बढ़ते हुए बोला।
दोनों होटल के गेट से निकले और चार सफेद पत्थर की सीढ़ियां उतरकर सड़क पर आ गये।
”इधर चल....।“ अर्जुन त्यागी बाईं तरफ इशारा करते हुए बोला—”इधर थोड़ी दूरी पर हल्का जंगली इलाका शुरू हो जाता है, वहीं काबू करेंगे उसे।“ कहकर उसने कनखियों से पीछे देखा।
वह बढ़े हुए पेट वाला तब गेट से निकल रहा था।
दोनों बाईं तरफ बढ़ने लगे।
सीढ़ियां उतरकर सड़क पर आ खड़ा हुआ वह व्यक्ति, उनकी पीठ पर निगाहें टिकाये बोला—
”वो गांधी कालोनी की तरफ पैदल जा रहे हैं....। जरूर उस लड़के ने लड़की को पटाया हुआ है। रास्ते में जो छोटा-सा जंगली इलाका पड़ता है, वहीं वह लड़की का भोग लगायेगा।“
”पीछे लगे रहो....। हम बस पहुंचने ही वाले हैं।“ उसके कान में आवाज गूंजी—”पीछा मत छोड़ना, न ही उन्हें नजरों से ओझल होने देना।“
”ठीक है।“
कहकर बढ़े हुए पेट वाला उनसे एक निश्चित दूरी बनाकर उनका पीछा करने लगा।
सड़क के बीचो-बीच बने डिवाइडर में जगह-जगह लगी ट्यूबें रात के अन्धेरे को भगाने में काफी हद तक कामयाब हो रही थीं। करीब एक किलोमीटर बाद रोड लाइट का सिलसिला खत्म हो गया।
डिवाइडर भी वहीं खत्म हो गया और अब सामने अन्धेरे में डूबी सड़क थी, जिसके दाईं तरफ बबूल के पेड़ों का जंगल था, तथा बाईं तरफ के जंगल में पेड़ों की नई तरह की नस्लें थीं....। उनमें शीशम के पेड़ भी थे और नीम के भी थे....। पीपल के बड़े-बड़े पेड़ भी थे और बरगद के भी विशाल वृक्ष थे। बीच में इक्का-दुक्का फलदार वृक्ष भी थे....लेकिन रात के इस अन्धेरे में सभी पेड़ एक से नजर आ रहे थे।
अर्जुन त्यागी ने आगे बढ़ते हुए गर्दन पीछे मोड़ी तो थोड़ी दूरी पर उसे एक की बजाये कई साये नजर आये, जो उन्हीं की तरफ बढ़ रहे थे।
”खतरा....।“ वह धीरे से बोला।
गौरी ने चौंककर पीछे देखा।
”पांच हैं।“ वह बोली—”मगर पुलिसिये हरगिज नहीं....।“
”लड़ लेगी?“
”दो को आराम से सम्भाल लूंगी। बाकी तीन को तू सम्भाल लेना।“ गौरी हौले से हंसी।
”और अगर उनके पास हथियार हुए तो?“
इसका जवाब नहीं दे पाई गौरी....।
”जो होगा देखा जायेगा।“ अर्जुन त्यागी गुर्राया—”भिड़ जा....। पता तो लगे कि यह लोग चाहते क्या हैं....।“
सुनते ही गौरी के पैर थम गये और वो तेजी से पीछे पलटी।
अर्जुन त्यागी भी मुड़ गया तथा गौरी से थोड़ी दूरी बना ली, ताकि वे पांचों भी बंट जायें।
अब तक वे साये काफी करीब आ चुके थे।
दोनों को लड़ने के लिये तैयार देख पांचों पहले तो ठिठके, फिर एक बोला—
”तू छोकरी को पकड़, हम इस लौंडे का काम तमाम करते हैं....।“
तुरन्त एक गौरी की तरफ लपका, जबकि बाकी के चार अर्जुन त्यागी की तरफ बढ़े।
इससे पहले कि वे चारों अर्जुन त्यागी पर हमला करते, अर्जुन त्यागी ने एक तेज हुंकार भरी और उन चारों पर टूट पड़ा। उन चारों में से किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि जिसे वे खत्म करने का इरादा पाले हुए थे, वे इस हद तक खतरनाक हैं....तभी तो वे बौखला उठे थे, और उनकी बौखलाहट का पूरा फायदा उठाया अर्जुन त्यागी ने।
लात-घूंसों की बरसात कर दी उसने उन पर।
उधर गौरी की तरफ बढ़ने वाला जैसे ही उसके करीब पहुंचा, गौरी का बदन रबड़ के बबुए की मानिन्द उछला और उसके दोनों पैर उस आदमी के सीने से टकराये।
बुरी तरह से चीखता हुआ वह उछलकर कई फुट पीछे जा गिरा।
इधर गौरी के पैर वापिस सड़क पर पड़े तो उसके दायें पैर के नीचे पतली-सी लकड़ी आ गई।
झुककर उसने वह लकड़ी उठाई....।
वह पेड़ से टूटी लम्बी डाल थी, जिस पर पत्ते लगे थे और वो पूरी तरह से लचकदार थी।
बस फिर क्या था!
सबसे बेहतरीन हथियार आ गया था उसके हाथ में।
दायें हाथ से डाल के सिरे को पकड़ उसने बायें हाथ की मुट्ठी से दायें हाथ में पकड़ी डाल को पकड़ा और तेजी से दायां हाथ पीछे खींचा....।
खिंचते ही डाल पर लगे पत्ते उसकी मुट्ठी के ऊपर इकट्ठे हो गये, और ऊंचे हाथ में डाल की पतली डण्डी आ गई....।
तब तक नीचे गिरा व्यक्ति खड़ा हो चुका था।
गौरी ने तेजी से हाथ में पकड़ी टहनी को लहराया।
”सांय....।“
हण्टर की तरह टहनी उस व्यक्ति के बदन से टकराई और वह बुरी तरह से बिलबिला उठा।
”सांय-सांय-सांय....।“
गौरी के हाथ में थमी टहनी उस पर कोड़ों की तरह बरसने लगी और उसके मुंह से चीखें उबलने लगीं।
चीखते हुए वह अपने साथियों से जा मिला, तो गौरी के सामने जो भी आया, वह उसी पर हण्टर बरसाने लगी।
उधर अर्जुन त्यागी के लात-घूंसे उनकी ऐसी-तैसी फेर रहे थे।
शीघ्र ही वे समझ गये कि उन पर काबू नहीं पाया जा सकता....। सो अपनी जान बचाने के लिये उन्होंने वहां से भागना ही उचित समझा....।
तुरन्त वे वापिस भागने लगे।
अर्जुन त्यागी भी उनके पीछे भागा, और सबसे पीछे वाले के बालों को पीछे से पकड़ लिया।
”भागता कहां है?“ वह उसे रोकते हुए बोला—”अभी तो हमारा काम शुरू ही हुआ है....। अभी तो तेरे को पूरा लंगर खिलाना है। उसके बाद ही जायेगा तू।“
”न....हीं....।“ वह आदमी बुरी तरह से डरे स्वर में बोला—”मुझे मत मारो।“
”सांय....।“ तभी गौरी का चाबुक उसकी टांगों पर पड़ा।
”हाय मर गया....।“ वह चीखा।
”अभी कहां मरा तू? अभी तो मरेगा।“ अर्जुन त्यागी गुर्राया।
”न....हीं....मुझे माफ कर दो....। मेरी तौबा, मेरे बाप की तौबा, मेरे बाप के बाप की तौबा....। आगे से मैं उनके साथ भी रहूं तो मेरे को मौत आ जाये।“
”नाम बोल अपना....?“ उसके बालों को पकड़े अर्जुन त्यागी उसे आगे-पीछे करते हुए गुर्राया।
”म....मोहन....!“
”और वो चारों कौन हैं, जो तेरे को छोड़कर भाग गये?“
”व....वो....विकास....रमेश....कमलेश और सुभाष हैं।“
”कहां रहते हैं सब....?“
”रा....जपुरा में....।“
”पूरा पता बोल।“
उसने पूरा पता बताया।
”शाबास! अब ऐसे ही अच्छे बच्चों की तरह यह भी बता कि हमारे पीछे क्यों लगे हुए थे?“
”व....वो....वो....!“ मोहन ने होंठ भींच लिये।
”बता....?“ कहते हुए गौरी ने चाबुक चला दिया।
”सांय....।“
बुरी तरह से चीखा मोहन—”ब....ताता हूं....।“
”जल्दी बोल, वर्ना चमड़ी उधेड़कर रख दूंगी।“
”ह....हम तुम्हें उठाने आये थे।“ मोहन बुरी तरह से थर्राये स्वर में बोला।
बुरी तरह से चौंक उठी गौरी।
”मुझे उठाने....?“ उसने अपने सीने पर उंगली रखी।
”ह....हां....।“
”मेरा अपहरण करना चाहते हो तुम....?“ उसे अभी भी विश्वास नहीं हुआ।
”ह....हां....।“
”क्यों....?“ अर्जुन त्यागी ने उसके बालों को झिंझोड़ा—”क्यों करना चाहते हो तुम इसका अपहरण?“
”क्....यों कि इ....इसकी सूरत किसी लड़की से मिलती है।“
”तो....?“
”प....पूरी बात तो क....कमलेश को पता है। म....मुझे बस यही पता है कि यह करोड़ों-अरबों का चक्कर है। जिसमें कामयाब होने पर हमें करोड़ों मिलेगा।“
करोड़ों का नाम सुनते ही अर्जुन त्यागी और गौरी के कलेजे धड़क उठे। उनके चेहरे हालांकि अन्धेरे में नजर तो नहीं आ रहे थे, मगर अन्दाजा लगाया जा सकता था कि वे कितने चमकने लगे थे।
अर्जुन त्यागी ने उसकी बांह पकड़ते हुए उसके बाल छोड़े और अपनी आवाज में झिड़की लाते हुए बोला—”पहले नहीं बता सकता था कि करोड़ों-अरबों का चक्कर है। खामखां ही इतनी मार खाई। यही बात अगर तू पहले बताता तो हम खुद ही तेरे साथ चल पड़ते।“
”तो अब भी क्या बिगड़ा है।“ गौरी के स्वर में भी नर्मी आ गई—”हम खुद ही चल पड़ते हैं उनके पास....। वहां अगर हमें कमाने का रास्ता नजर आया तो हम हां कर देंगे....नहीं तो वापिस आ जायेंगे।“
”चल....चलते हैं तेरे साथियों के पास। देखें तो सही, इस लड़की में उन्हें ऐसा क्या दिखा, जो वो इसे ही पाना चाहते हैं....।“ अर्जुन त्यागी बोला।
”ल....लेकिन....!“
”घबरा नहीं....कुछ नहीं होगा तेरे को....।“ गौरी बोली।
मोहन थूक सटककर रह गया।
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