थाना देगा दहेज
राकेश पाठक
“क्या...बिजनेस करते हो यंग मैन?”
“जी...मैं पुलिस में हूं। सब-इंस्पेक्टर हूं। पोस्टिंग ही है...इसी शहर में।”
“कितनी तनख्वाह मिल जाती है?”
“जी...ढाई हजार के लगभग है।”
“खैर...तनख्वाह को छोड़ो। ये बोलो कि ऊपर से कितना पड़ जाता है?”
“जी...जी मैं समझा नहीं?”
“अरे भाई...हमारा मतलब ऊपर की कमाई से हैं, रिश्वत से है। आठ-दस हजार तो बना ही लेते होगे?”
“जी नहीं। मैं रिश्वत नहीं लेता।”
“क्या बात करते हो तुम? पुलिस वाले होकर भी रिश्वत नहीं लेते। जैसे मछली पानी के बिना नहीं रह पाती, वैसे ही कोई पुलिस वाला रिश्वत के बिना...।”
“जी मैं गन्दे तालाब की कोई मछली नहीं हूं कि जुर्म के मगरमच्छों के हाथों अपना...अपने जमीर का पानी बेच दूं। गवर्नमेन्ट ने मुझे ये वर्दी कानून की रक्षा के लिए दी है फिर मुझे अच्छी तनख्वाह भी तो मिलती है।”
“तनख्वाह...है...।” उसने बुझा हुआ सिगार फेंका तथा बुरा-सा मुंह बनाते हुए कसैले स्वर में बोला—“ढाई हजार की मामूली रकम को तुम तनख्वाह बोलते हो? हूं...ऊंट के मुंह में जीरा हुआ ये तो। इससे दोगुनी तनख्वाह तो हम अपने मैनेजर को दे देते हैं। तुम हमारी बेटी का हाथ मांगने आए हो, मालूम है कि उसे हम मंथली कितनी पॉकेट मनी देते हैं? दस हजार रुपये। अक्सर वह अपनी सहेलियों के बीच उस रकम को उड़ा देती है तथा हमसे और मांग लेती है। ढाई हजार रुपये में तुम अपना पेट भरोगे कि हमारी बेटी का? हमारी बेटी को कार में घूमने का और होटलों में खाने का शौक है। क्या तुम उसकी नीड्स को पूरा कर पाओगे?”
“ऐश और शानो-शौकत की कोई सीमा नहीं होती है सर! उड़ाने को तो लाखों-करोड़ों रुपये भी कम पड़ जाएंगे। इंसान की जरूरत तो सिर्फ रोटी, कपड़ा और मकान होती है। मेरी बीवी बनने पर निशा अच्छा खाएगी, बढ़िया पहनेगी और इज्जत के साथ चारदीवारी में रहेगी। इंसान को अगर भरपूर प्यार मिले तो वह आत्म सन्तोष के सहारे खुश रह लेता है। हम दोनों एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं। आप निशा से पूछ लीजिए कि वह मेरी बीवी बनकर खुश रहेगी कि नहीं?”
“निशा अभी बच्ची है। वो प्यार के रेत को चांदी के कण समझ रही है, जब उस पर चलकर जख्मी होगी तो अकल ठिकाने आ जाएगी। दूर के ढोल की आवाज कानों को भाती है, लेकिन जब पास जाओ तो कानों के परदे खराब कर देती है। दूर से पहाड़ सुहावने लगते हैं, लेकिन पास जाने पर बहुत भद्दे...बहुत कठोर दिखलाई पड़ते हैं। तुम गुण्डों से निशा की इज्जत बचाकर उसका दिल जीत लिया था। उसने तुम्हें फिल्मी हीरो समझ लिया और प्यार करने लगी। लेकिन हमें उसके भविष्य के बारे में सोचना है। देखो बरखुरदार...तुम हमारे पास छः महीने बाद आना। हम निशा से तुम्हारी शादी कर देंगे। छः महीने के भीतर अपनी पोजीशन बनाओ। अपने स्टेटस को स्टैंड करो। एक पुलिस वाले के लिए ये वक्त काफी होता है। कल से ही पार्टियां चुन लो और उनसे हफ्ता या महीना बांध लो। इतना माल समेट लो कि तुम एक आलीशान बंगला और कार वगैरह खरीद सको और फिर अपना दामाद बनाने में हम फख्र तो महसूस करेंगे। ना-ना...इतनी जल्दी हां या ना मत बोलो। घर जाकर सोच विचार करना। अगर हमारी शर्त मंजूर हो तो शौक से निशा से मिलो। उसके साथ कहीं भी घूमने-फिरने जाओ लेकिन...लेकिन, अगर तुम्हारे दिमाग से ईमानदारी का भूत ना उतरे तो...निशा से कभी ख्वाबों में भी मत मिलना। हम बड़े-बड़े लोगों तक पहुंच रखते हैं। हमारी एक चुटकी पर वर्दी उतर जाया करती हैं। नाउ...यू कैन गो।”
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“ये...ये ठीक नहीं हुआ है सोम...!” वह रूपसी सब-इंस्पेक्टर की वर्दी वाले युवक के सीने से लगी हुई सुबककर बोली—“पापा जी ने हमेशा ही दौलत को तरजीह दी है लेकिन मैं समझती थी कि वह अपनी बेटी की खुशी के लिए हामी भर देंगे। मैं...मैं तुम्हारे बिना नहीं जी पाऊंगी सोम। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं।”
“मैं भी तो तुम्हें अपनी जान से बढ़कर प्यार करता हूं पगली। तुम अपने पापा को समझाओ।”
“पत्थर की लकीर मिट सकती है, लेकिन पापा जी का निर्णय नहीं बदल सकता। वो अब तुम्हें अपने दामाद के रूप में अपनी शर्त पर स्वीकार करेंगे। अब तो हमारे सामने एक ही रास्ता बचता है।”
“वो क्या?”
“हमें यहां से भागना होगा और किसी मन्दिर में शादी करनी होगी। हम मैरिज रजिस्ट्रार की ऑफिस में एप्लाई नहीं कर सकते हैं। पापा जी को मालूम हो जाएगा। उनकी पहुंच स्टेट के सी०एम० तक है। वह कुछ भी कर सकते हैं।”
“नहीं निशा...।” वह कसमसाते हुए बोला—“मैं ऐसी ओछी हरकत नहीं कर सकता। हम दोनों अगर भागते हैं तो मेरी नौकरी चली जाएगी।”
“क्या तुम मेरी खातिर अपनी नौकरी पर लात नहीं मार सकते सोम? तुम कहीं भी मेहनत करके पैसे कमा सकते हो।”
“लेकिन हमारे घरवालों की बदनामी हो जाएगी। मेरी मां कैंसर की मरीज है, वो इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पाएंगी। मेरी दो बहने हैं। उनकी जिम्मेदारी मेरे सिर पर है। मुझे रचना की शादी करनी है और छोटी वाली को पढ़ाना-लिखाना है। मां का इलाज चल रहा है, अगर मैं घर पहुंचने में थोड़ा भी लेट हो जाता हूं तो मां परेशान हो जाती हैं।”
“तो फिर तुम दूसरा रास्ता अपना लो। उस रास्ते पर चलकर तुम न सिर्फ मुझे पा लोगे...बल्कि अपनी मां का ऑपरेशन भी करा सकोगे। अपनी बहनों का भविष्य भी बना सकोगे।”
“तुम्हारा मतलब है कि मैं अपने जमीर को बेचकर रिश्वत लेने लगूं? नो...निशा नो। मैं मर तो सकता हूं...बड़े से बड़ा त्याग कर सकता हूं, लेकिन अपनी आत्मा का सौदा नहीं कर सकता।”
“फिर तो तुम्हें मुझे भूलना होगा। तुम्हारी जिद हम दोनों के बीच दीवार बन रही हैं। ना ही तुम अपनी बहन रचना की शादी कर पाओगे सोम। उसने एक करोड़पति बाप के बेटे से प्यार किया है तथा उसके बच्चे की मां बनने वाली है। सेठ शान्तिलाल एक नम्बर का सुदखोर है, वो अपने बेटे को मुफ्त में नहीं बेचेगा। ईमानदारी की राह पर चलते हुए तुम अपनी मां का सरकारी हॉस्पिटल में इलाज तो करवाते रहोगे, लेकिन उसका ऑपरेशन नहीं करवा पाओगे। तुम्हारी छोटी बहन की डॉक्टर बनने की इच्छा भी अधूरी रह जाएगी। ना जाने क्यों तुम ईमानदारी का पट्टा गले में डाले फिर रहे हो? क्या मिल पाएगा इससे?”
“आत्म सन्तोष। मैंने अपने क्रान्तिकारी बाप को वचन दिया था कि भले ही चाहे कितनी भी विषम परिस्थिति हो, लेकिन ईमानदारी की राह नहीं छोडूंगा। अपने जमीर को नहीं मारूंगा। मैं नहीं जानता कि मेरे नसीब में क्या लिखा है। लेकिन जब तक सांस है...मैं अपनी वर्दी पर बेईमानी का एक भी धब्बा नहीं लगने दूंगा।”
“अभी...अभी तुम्हारे भीतर जोश है सोम! तुम्हें अपनी ईमानदारी ठण्डे पानी का चश्मा नजर आ रही होगी लेकिन जब हकीकत के नजदीक पहुंच जाओगे तो अपनी ईमानदारी ज्वालामुखी महसूस होने लगेगी। तुम कानून की वर्दी पहनकर उस समन्दर में कूद पड़े हो, जहां बेईमानी के मगरमच्छ भरे पड़े हैं। तुम्हें या तो उनके रंग में रंगना होगा, वर्ना वो तुम्हें जीने नहीं देंगे।”
“मैं कोई मछली नहीं हूं कि जुर्म के मगरमच्छ मुझे चट कर जाएंगे। मेरे पास वर्दी रूपी तलवार तथा कर्तव्यनिष्ठतारूपी ढाल है। मैं अपना बचाव करते हुए उनका संहार कर डालूंगा।”
निशा की सुर्ख होठों पर व्यंगपूर्ण मुस्कान थिरक उठी, वो सोमनाथ शास्त्री नामक उस युवक की भूरी आंखों में झांकते हुए बोली—“कल शायद हमारी फिर मुलाकात हो, अगर मुलाकात हुई तो मेरा सबसे पहला सवाल यही होगा कि तुम्हारी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठता किधर है?”
युवक के सांवले होठों पर दम तोड़ती-सी मुस्कान उभर आई।
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“अगर आप बुरा न मानें तो मैं आपसे एक सवाल करना चाहता हूं सेठ जी! आपके इकलौते बेटे नीरज के लिए बड़े-बड़े घरानों से रिश्ते आ रहे थे लेकिन आपने एक मामूली सब-इंस्पेक्टर की बहन को अपनी बहू बनाने का फैसला क्यों किया है?”
शान्तिलाल नामक मोटे व थुलथुले शख्स का चेहरा लाल भूभका हो चला, वो सामने वाले शख्स को घूरते हुए व्यंग के लहजे में बोला—“तुम एक दरोगा को मामूली आदमी बोल रहे हो, विक्टर? खाकी वर्दी वाले को कुछ समझते नहीं हो तुम? ना जाने कौन-सी दुनिया में रहते हो यार। एक कॉन्स्टेबल भी जब अपनी बहन या बेटी की शादी करते हैं तो लाखों का दहेज देते हैं। जबकि सोमनाथ शास्त्री तो टू स्टार वाला है। दरोगा को समझते क्या हो? उसे रिजर्व बैंक का गवर्नर ही समझो तुम। नोट छापने की मशीन है वो। भट्ठे वाले, शराब वाले, कैसीनो वाले, स्मगलर और ड्रग पैडलर...ये सभी रिश्वत भिजवाते हैं थाने में। किसी को कत्ल करना होता है या कहीं डाका मारना होता है तो वह थाने में नोटों से भरा ब्रीफकेस भिजवा देता है। थोड़ी कमाई समझते हो पुलिस वाले की? वो थोड़ी देर बाद ही मंगनी लेकर आने वाला है। वो इतना सामान लेकर आएगा कि हमारे कोठी छोटी पड़ जाएगी।”
“वो तो ठीक है सेठ जी लेकिन सुना है कि ये शास्त्री बड़ा ही ईमानदार अफसर है। उसने एन्थनी के बेटे को पकड़ा था। एन्थनी ने उसे दस हजार देने चाहे थे लेकिन उसने नहीं लिए थे।”
“कैसी बात करते हो यार विक्टर! दस हजार रुपये तो ऊंट के मुंह में जीरा जैसे हैं। भला शास्त्री को इतनी मामूली रकम देने की क्या जरूरत है? जिसे अपनी पार्टी से मोटी रकम मिल जाती हो, वो भला आम नागरिक से छोटी रकम लेकर अपनी पोजीशन डाउन क्यों करेगा? बदनामी मौल क्यों लेगा?”
“वो...वो मुजरिमों से सख्त नफरत करता है। पिछले हफ्ते ही उसने बैंक लुटेरों को पकड़ा था और उनमें से एक को गोली मारी थी।”
“सब पुलिस वालों को अपना रिकॉर्ड भी तो बनाना पड़ता है। अगर दो-चार को पकड़ेंगे नहीं, एक-आध को एनकाउण्ट में मारेंगे नहीं तो लोग उन्हें बेईमान और भ्रष्ट मान लेंगे। होशियार पुलिस अफसर ऐसा ही करते हैं। जो मुजरिम उनसे हाथ मिलाकर नहीं चलते हैं, उन्हें लम्बा नाप देते हैं। यही तो...।”
“सेठ जी, मेहमान आ गए हैं।”
“हम आते हैं गोलू। बिठा उन्हें। अरे सुनो...वह क्या-क्या सामान लाए हैं?”
“जी...वो कार से अकेले ही आए हैं। एक थैला लेकर ही उतरे हैं।”
सेठ शान्तिलाल की पेशानी पर मोटी-मोटी सिलवटें पड़ गई।
“ओह, हम समझ गए हैं। उसने चालाकी का ही परिचय दिया है। वो अगर सामान लेकर आता तो लोग उस पर उंगलियां उठाते। वो बैग ले आया है। हम अपनी मनपसन्द का सामान खरीद लेंगे।”
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