ताबूत तैयार है
“साहनी सेठ।” मोबाइल पर एक सरसराहट-सी गूंजी।
“बोल रहा हूं।”
“तेरा ताबूत तैयार है।”
“क्या बकवास है?”
“अगर तूने आज मेरी बात को बकवास समझा तो अपनी जिन्दगी की तीसरी सबसे बड़ी गलती करेगा।”
“तू है कौन?”
“बीस साल पुराना तेरा एक चहेता।”
“यानि?”
“नागपाल।”
“नागपाल...यानि कोबरा?”
“हां। वही कोबरा, जिसके बारे में मशहूर है कि उसका काटा पानी नहीं मांगता।”
“कहां से बोल रहा है?”
“यमलोक से।”
“नाराज है?”
“खुश होने की एक भी वजह नहीं है मेरे पास।”
“तुझे मेरा मोबाइल नम्बर कहां से मिला?“
“नागपाल अब बीस साल पुराना नागपाल नहीं रह गया है।” मोबाइल में से फुंफकार-सी आई।
“सो तो है। बीस साल पुराना नागपाल आज सचमुच कोबरा बन गया है।”
“मुझे जिस जानकारी की जरूरत होती है, हासिल कर लेता हूं।”
“फिर तो तुझे मेरे घर का पता-ठिकाना भी मालूम होगा?”
“पिछले बीस साल से मैं तेरे बारे में छोटी-से-छोटी जानकारी भी इकट्ठा करता रहा हूं। तेरी पूरी कुण्डली मेरे पास है। कहे, तो सुनाऊं?”
“जल्दी क्या है? सुन लूंगा आराम से। फिलहाल तो एक काम कर, सीधा मेरे पास आजा।”
“क्यों?”
“बैठकर बातें करेंगे। तेरे सारे पुराने गिले-शिकवे दूर कर दूंगा मैं! सच कहूं तो मुझे तेरी याद भी आ रही है और...।”
“और...?”
“तेरी जरूरत भी है इन दिनों।”
“जैसे पहले थी?”
“ऐसा ही समझ।”
“और जरूरत खत्म होते ही पहले की तरह तू मुझे ठोकर मारकर फिर से बाहर फेंक देगा।”
“गुस्सा थूक दे! पुरानी बातें भूल जा।”
“बीस साल से जिस बेज्जती की आग में सुलग रहा हूं, जिस मनहूस घड़ी को हर पल याद करता रहा हूं, उसे भूलने में भी मुझे अगले बीस साल ही लगेंगे।”
“इसीलिए तो कहता हूं कि गुस्सा थूक दे। मेरे पास आ जा। तू अपनी कहना और मैं अपनी कहूंगा। हमारे बीच जरूर सुलह हो जाएगी।”
मगर बदले में मोबाइल पर फिर एक जोरदार-सी फुंफकार गूंजी।
“बोल, आता है?”
“तेरा ताबूत मैंने अपने हाथों से तैयार किया है साहनी सेठ। इसमें लेटने के लिए तो अब तुझे ही अपने पैरों पर चलकर मेरे पास आना होगा।”
“फिर बकवास?”
“फिर बकवास समझने की बेवकूफी तो तू कर रहा है साहनी।” इस बार की फुंफकार में कुछ विष-सा घुला हुआ महसूस हुआ।
“तू धमकी दे रहा है मुझे?”
“बिल्कुल नहीं। तू अच्छी तरह जानता है कि नागपाल सिर्फ वही कहता है, जो करता है।”
“चाहता क्या है?”
“पचास करोड़।”
“दिमाग खराब हो गया है तेरा? औकात भूल गया है अपनी? मेरे लिए तू पहले भी एक कीड़ा था और आज भी कीड़ा है। आज भी तुझे चुटकी में पकड़कर मसल सकता हूं मैं।”
“तू कीड़ा ही समझना चाहता है, तो समझ। यही खुशफहमी पालना चाहता है, तो पाल, मगर याद रख। कुछ कीड़े जहरीले भी होते हैं और मैंने तो पिछले बीस साल से हर पल अपनी बेइज्जती का जहर पाला है अपने भीतर। तूने मेरी ओर हाथ भी बढ़ाया, तो ऐसा डंक मारूंगा कि अब तक का वह सारा जहर तेरे जिस्म में उतर जाएगा।”
“कीड़ा हर हाल में सिर्फ कीड़ा होता है। मेरी गलती यह रही कि मैंने तुझे बीस साल पहले ही मसलकर खत्म नहीं कर दिया। आज तू अपने जहरीले डंक की बात कर रहा है, तो जरूर तेरी औकात भुनगे से बढ़कर कीड़े की हो गई है। खासकर पिछले दस साल में काफी तरक्की की है तूने। तेरे बारे में काफी कुछ छपता रहा है अखबारों में, पिछले बीस साल से मैं भी उसी पुराने तवे पर रोटियां नहीं सेक रहा हूं। शायद तू नहीं जानता कि मैं...।”
“कहा ना। तेरी अब तक की पूरी कुण्डली है मेरे पास।”
“तो फिर तू यह भी जानता होगा कि मैं मंत्री...।”
“मंत्री पद पर रह चुका है, यही ना? मैं जानता हूं कि पब्लिक को झूठ के मीठे झांसे देकर और बूथ कैप्चरिंग करके तू डेढ़ बार राज्य मंत्री बन चुका है। डेढ़ बार इसलिए कि दूसरी बार तेरा कार्यकाल पूरा होने से पहले ही तुझे ठोकर मारकर पार्टी से बाहर फेंक दिया गया और सारे देश में बड़ी थू-थू होने के बाद तुझे मजबूर होकर अपनी कुर्सी से इस्तीफा देना पड़ा। उस वक्त कुल मिलाकर सात बड़े घोटालों के केस चल रहे थे तुझ पर। सी०बी०आई० और तेरे खिलाफ बिठाए गए जांच कमीशन का ख्याल था कि हर घोटाले में तूने कम-से-कम तीन हजार करोड़ रुपए बनाए थे। यानि कुल मिलाकर इक्कीस हजार करोड़ रुपए। इनमें से कम-से-कम एक घोटाले की रकम तो तूने अपने बचाव के लिए खर्च कर ही डाली होगी। बचे अट्ठारह हजार करोड़ रुपए। अब पिछले 5 साल से तू साहनी सेठ का चोला पहनकर ऐश कर रहा है। पांच बड़े कृषि फार्म, छ: होटल, जिनमें चार तीन सितारा हैं, तीन टेक्सटाइल्स मिल्स, दो सीमेंट फैक्ट्री, देश के बड़े-बड़े नगरों में दस शानदार बंगले, सैकड़ों नौकर-चाकर, दर्जनों गाड़ियां। यही सब कुछ है ना तेरे पास?”
“हां। लगभग-लगभग तो यही है, मगर एक खास चीज और है मेरे पास, जिसका जिक्र तूने नहीं किया है।”
“वह क्या?”
“ताकत।”
“पैसे की ताकत?”
“पैसे की ताकत तेरे जैसे सैकड़ों सड़क छाप गुण्डों को तरकारी के भाव खरीद सकती है।”
बदले में दूसरी ओर से व्यंग भरी जहरीली हंसी की आवाज आई।
“मगर मेरे पास पैसे की ताकत के अलावा एक और ताकत भी है।”
“वह ताकत भी बता।”
“पहुंच। बहुत ऊपर तक पहुंच है मेरी आज भी। भले ही आज मैं मंत्री नहीं हूं, भले ही मेरे अपने पास कुर्सी नहीं है, मगर कुर्सी की ताकत वालों तक आज भी मेरी पहुंच है। आज भी खासा रुतबा है मेरा। मेरे एक फोन पर आज भी इस शहर की हवा का रुख बदल सकता है। बड़े-से-बड़े ऑफिसर की कुर्सी उसके नीचे से खिसक सकती है। सबसे बड़ी बात यह है कि इस शहर की पूरी पुलिस फोर्स मधुमक्खियों की तरह तुझ जैसे गुर्राने वाले कुत्ते के पीछे पड़ सकती है।”
“तुझमें यही कमी पहले भी थी साहनी और आज भी है।”
“कौन सी कमी?”
“हमेशा यही सोचता है कि तू क्या कर सकता है। यह नहीं सोचता कि सामने वाला भी कुछ कर सकता है।”
“तू अपनी बात कर रहा है?”
“ऐसा ही समझ ले।”
“क्या कर सकता है तू?”
“कम-से-कम तीन काम तो मैं कर ही सकता हूं। कर सकता नहीं, बल्कि कर चुका हूं।”
“पहला तेरा ताबूत तैयार करने का?”
“बिल्कुल ठीक।”
“और दूसरा?”
“तेरे होठों पर एक ऐसा ताला लगा देने का काम कि तू चाहकर भी ऊपर तक फोन नहीं कर सके।”
“और तीसरा?“
“तीसरा काम तुझे इस हद तक मजबूर कर देने का कि तू खुद पचास करोड़ रुपये लेकर मेरे पास आ जाए।”
“ख्वाब देख रहा है।”
“जब तुझे सच्चाई का पता चलेगा, तो तुझे खुद सब कुछ ख्वाब सा महसूस होने लगेगा।”
“क्या सच्चाई है?”
“जानना चाहता है?”
“हरगिज़ नहीं। किसी जोकर की मजाकिया बातों में मेरी कोई दिलचस्पी नहीं, मगर जब तू इतनी देर से अपनी बकवास सुनाने के लिए मरा ही जा रहा है, तो निकाल ले अपने भीतर की भड़ास। बोल, क्या कहना चाहता है तू? कौन सी बात बतानी चाहता है मुझे? क्या है सच्चाई?”
“शालू को जानता है तू?”
“शालू साहनी? मेरी बेटी? कहां है वह? क्या किया तूने उसके साथ?”
“एक साथ इतने सारे सवाल? खैर, तेरी बेटी शालू इस वक्त मेरे कब्जे में है और आराम से है। अभी तक मैंने उसके साथ कुछ नहीं किया है, अगर मुझे पूरे पचास करोड़ रुपये नहीं मिले, तो फिर मैं उसके साथ कुछ भी कर सकता हूं।”
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