सुहाग से बड़ा
“आपका नाम?”
“माधुरी-माधुरी श्रीवास्तव।”
“उम्र?”
“बीस वर्ष।”
“पिता का नाम?”
“स्व. अमरीश श्रीवास्तव।”
“कहां रहती हैं?”
“डिफेंस कॉलोनी ए-7/512, गुरुद्वारे के नजदीक।”
“आपके अपने और कौन-कौन हैं?”
“सिर्फ एक भाई।”
“आपसे छोटा?”
“जी नहीं, दो साल बड़े हैं।”
“क्या करते हैं?”
“सब-इंस्पेक्टर के लिए ‘सलेक्ट’ हुए हैं, आजकल ट्रेनिंग पर हैं।”
“और आपने ‘जर्नलिज्म’ का कोर्स कम्पलीट किया है?”
“जी हां।”
“हमारे यहां, यानि ‘बारूद’ में, क्राईम रिपोर्टर का ओहदा चाहती हैं?”
“आपने ‘वेकेन्सी’ निकाली थी, उसी को पढ़कर इंटरव्यू के लिए आई हूं।”
“सॉरी मिस माधुरी।” कहने के साथ ‘बारूद’ के प्रधान सम्पादक ने नाक पर थोड़ा नीचे सरक आया चश्मा दुरुस्त किया तथा पीठ कुर्सी की पुश्त पर टिकाता हुआ बोला.....“हमारे यहां क्राईम रिपोर्टर की जगह खाली जरूर है मगर.... ”
“मगर?”
“वह जगह किसी लड़की को देने का हमारा कोई इरादा नहीं है।”
“वजह?”
“दरअसल क्राईम रिपोर्टर का पेशा जोखिम भरा होता है। कदम-कदम पर उसका वास्ता खूंखार किस्म के अपराधियों तथा हत्यारों से पड़ता है और इसलिए वे रिपोर्टर के दुश्मन बन जाते हैं।”
“यह सब मैं जानती हूं।”
“लेकिन शायद यह नहीं जानतीं कि ये भूखे भेड़िये आप जैसी खूबसूरत लड़की के साथ किस दरिंदगी से पेश आ सकते हैं?”
“आप यह कहना चाहते हैं न कि वे मेरे साथ ‘रेप’ तक कर सकते हैं?”
सम्पादक महोदय हड़बड़ा गए।
एकदम से कोई जवाब नहीं सूझा उन्हें।
माधुरी की तरफ देखते रह गए....उस माधुरी की तरफ जिसके सिन्दूरी मुखड़े के जर्रे-जर्रे पर इस वक्त दृढ़ता-ही-दृढ़ता नजर आ रही थी....वे कल्पना तक नहीं कर पाए थे कि भोली-भाली और मासूम-सी नजर आने वाली यह लड़की इतनी ‘बोल्ड’ होगी....इतनी ज्यादा कि जिस बात को कहने में वे स्वयं हिचक रहे थे उसे ‘बेखटके’ कह गई....कुछ देर तक ध्यान से माधुरी को देखते रहने के बाद बोले....“मान लो कि ऐसा हो जाता है, उस अवस्था में आप क्या करेंगी?”
“हालांकि मेरे जीते-जी ऐसा नहीं होगा मगर आपके सवाल का जवाब देने के लिए मान लेती हूं कि हो जाता है।” माधुरी कहती चली गई....“ऐसा होने के बाद मेरी कलम रुकेगी नहीं अंकल और मुजरिमों के खिलाफ सिर्फ ‘लिखेगी’ ही नहीं बल्कि जहर उगलेगी और यह जहर माधुरी की कलम से उस वक्त तक फूटता रहेगा जब तक कि माधुरी के जिस्म में खून की एक बूंद भी रहेगी।”
“तुम जोश में हो बेटी और पत्रकारिता जोश से नहीं होती।”
“आपकी भूल है अंकल, मैं मुकम्मल रूप से होशो-हवास में हूं।”
एक बार पुनः सम्पादक महोदय को कहने के लिए ‘तुरन्त’ कुछ नहीं सूझा.....काफी देर तक मेज के पार बैठी माधुरी की तरफ देखते भर रहे.....दरअसल उन्हें लग रहा था कि इस लड़की से उलझकर उन्होंने गलती की है....माधुरी से ‘पिंड’ छुड़ाने का मन ही मन कोई बहाना तलाश कर रहे थे वे, काफी सोच-विचार के बाद बोले.....“देवराज ठक्कर का नाम सुना है तुमने।”
“सुना है।”
“क्या सुना है?”
“यह नाम एक ऐसी हस्ती का है जिसे इस शहर यानि कि पटना का बच्चा-बच्चा ‘वाइन किंग’ के नाम से जानता है.....पटना के अखबार और मैगजीनें जहां आए दिन यह लिखती रहती हैं कि इस शहर में देशी-विदेशी शराब के जितने ठेके हैं उन सबका वास्तविक मालिक सिर्फ और सिर्फ देवराज ठक्कर है, वहीं पटना पुलिस का मानना यह है कि इस शहर में बिकने वाली शराब की एक बूंद भी ऐसी नहीं होती जिसका मालिक देवराज ठक्कर न हो.....सीआईडी की रिपोर्ट यह है कि गन्दी बस्तियों में खिंचने वाली ‘कच्ची शराब तक उस गिरोह की देख-रेख में खिंचती और बिकती है जिसका सरगना देवराज ठक्कर है मगर.... ”
“मगर?”
“सब-कुछ जानने के बावजूद न तो इस बात को आज तक पुलिस साबित कर पाई है और न ही कोई पत्र-पत्रिका। अनेक छापे मारे गए, बेहिसाब गैरकानूनी गोदाम पकड़े गए मगर पुरजोर कोशिश के बावजूद कोई यह साबित नहीं कर सका कि गोदाम का मालिक देवराज ठक्कर है.....मालिक के रूप में जो शख्स पकड़ा जाता है वह सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लेता है....लाख यातनाओं के बावजूद पुलिस आज तक किसी मुजरिम से यह न कुबूलवा सकी कि वह किसी ऐसे गिरोह का मेम्बर है जिसका सरगना देवराज ठक्कर है.....वह देवराज ठक्कर जिसकी उठ-बैठ पटना के संभ्रान्त और अभिजात वर्ग में है, जिसकी दोस्ती एसपी पुलिस तक से है.....वह देवराज ठक्कर जिसके पास विधायक, एमपी और मन्त्रियों का आवागमन उसी तरह रहता है जैसे आपके इस ऑफिस में पत्रकारों का.....आप उस देवराज ठक्कर की बात कर रहे हैं अंकल जिससे सम्बन्धित खबरें और फोटो छापने पर पत्र-पत्रिकाओं की सेल बढ़ जाती है।”
“तुम ठीक समझीं, हम उसी देवराज ठक्कर की बात कर रहे हैं।”
“म-मगर मैं अभी तक यह नहीं समझ पाई कि उसकी बात कर क्यों रहे हैं आप?”
“क्या तुम उसका इन्टरव्यू ला सकती हो?”
“इ-इन्टरव्यू?” माधुरी उछल पड़ी.....“देवराज ठक्कर का इन्टरव्यू?”
सम्पादक महोदय ने रहस्यमय मुस्कान के साथ कहा.....“हां।”
माधुरी के गुलाबी होंठों पर सम्पादक से कहीं ज्यादा रहस्यमय मुस्कान उभरी, बोली.....“आप शायद मुझसे ‘पिंड’ छुड़ाना चाहते हैं?”
“क-क्या मतलब?” मन का चोर पकड़ा जाते ही वे हड़बड़ा उठे।
“जिस तरह शहर का बच्चा-बच्चा यह जानता है कि देवराज ठक्कर पटना का ‘वाइन किंग’ है उसी तरह बच्चा-बच्चा यह भी जानता है कि देवराज ठक्कर कभी किसी पत्रकार को इन्टरव्यू नहीं देता.....आज तक किसी अखबार या मैगजीन में उसका इन्टरव्यू नहीं छपा और आप....आप मुझसे उसका इन्टरव्यू लाने के लिए कह रहे हैं.....यह जानते-बूझते कह रहे हैं कि देवराज ठक्कर की डिक्शनरी में ‘इन्टरव्यू’ शब्द नहीं है।”
सम्पादक महोदय के होंठों पर अजीब-सी मुस्कान दौड़ गई, बोले.....“अगर देवराज ठक्कर का इन्टरव्यू ले आओ तो ‘बारूद’ में खाली पड़ा क्राईम रिपोर्टर का ओहदा तुम्हें मिल सकता है।”
“हालांकि जाहिर है कि यह शर्त आपने मुझसे ‘पिंड’ छुड़ाने के लिए रखी है परन्तु.... ”
“परन्तु?”
“मैं आपको देवराज ठक्कर का इन्टरव्यू लाकर दिखाऊंगी।”
सम्पादक महोदय इस तरह मुस्करा उठे जैसे कोई व्यक्ति तब मुस्कराता है जब सामने वाला उसके ‘वाक् जाल’ में फंस जाए। दिलचस्प स्वर में बोले.....“जरूर-जरूर अगर तुम कामयाब होती हो तो मैं या बारूद ही नहीं बल्कि समूचा पत्रकार जगत इस दुनिया में प्रविष्ठ होने पर तुम्हारा इतना जबरदस्त इस्तकबाल करेगा जितना कभी किसी पत्रकार का नहीं हुआ, पत्रकारों की शिरोमणी बन जाओगी तुम।”
“ठीक है।” कहने के साथ ही माधुरी खड़ी हो गई.....“अब मैं आपसे ठक्कर के इन्टरव्यू के साथ मिलूंगी।”
इस बार सम्पादक महोदय के होंठों पर जो मुस्कान उभरी वह, वह थी जो किसी बुजुर्ग के होंठों पर तब उभरती है जब किसी बच्चे को हाथ बढ़ाकर चांद को पकड़ने का प्रयत्न करता देखे।
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