Rehesamay Chakravyuh : रहस्यमय चक्रव्यूह
Ebook ✓ 48 Free Preview ✓
48
100
Description
पृथ्वी से दूर कई ग्रहों पर फैला वो रहस्यमय चक्रव्यूह—जहां तन्त्र, मन्त्र और यन्त्र की शक्तियों से सुसज्जित उन मायावी जीवों का साम्राज्य है, जो ब्रह्राण्ड के लिए ही खतरा बन चुके हैं। उस रहस्यमय चक्रव्यूह में इन्द्रजीत विनोद की जोड़ी ऐसी फंसी कि निकलने के सारे रास्ते बन्द नजर आ रहे थे। उनके साथ फंसे हिटलर नामक बन्दर और वृन्दा महाराज ने वहां भी अपनी कॉमेडी नहीं छोड़ी। बुद्धि और जुझारु इच्छाशक्ति के बल पर कैसे निकले वो उस रहस्यमय चक्रव्यूह से?
क्या वो खुद को बचा पाए या ब्रह्राण्ड को?
रौंगटे खड़े कर देने वाली रोमांचक जंग का दस्तावेज है — रहस्यमय चक्रव्यूह
I - डिम्बास्टर
II - रहस्यमय चक्रव्यूह
Ajgar
Ravi Pocket Books
BookMadaari
प्रस्तुत उपन्यास के सभी पात्र एवं घटनायें काल्पनिक हैं। किसी जीवित अथवा मृत व्यक्ति से इनका कतई कोई सम्बन्ध नहीं है। समानता संयोग से हो सकती है। उपन्यास का उद्देश्य मात्र मनोरंजन है। प्रस्तुत उपन्यास में दिए गए हिंसक दृश्यों, धूम्रपान, मधपान अथवा किसी अन्य मादक पदार्थों के सेवन का प्रकाशक या लेखक कत्तई समर्थन नहीं करते। इस प्रकार के दृश्य पाठकों को इन कृत्यों को प्रेरित करने के लिए नहीं बल्कि कथानक को वास्तविक रूप में दर्शाने के लिए दिए गए हैं। पाठकों से अनुरोध है की इन कृत्यों वे दुर्व्यसनों को दूर ही रखें। यह उपन्यास मात्र 18 + की आयु के लिए ही प्रकाशित किया गया है। उपन्यासब आगे पड़ने से पाठक अपनी सहमति दर्ज कर रहा है की वह 18 + है।
Free Preview
रहस्यमय चक्रव्यूह
अजगर
“मैं तो नाचूंगा जरूर।” हिटलर ने गम्भीरता से सिर हिलाते हुए क्षुब्ध भाव में कहा—“अपनी कौम के स्वतन्त्रता दिवस पर नाचना मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है। अगर मुझे किसी ने रोकने की कोशिश की, तो विश्व पशु संरक्षण परिषद में फरियाद करूंगा।”
“यह नहीं हो सकता।” वृन्दा महाराज ने गरजकर कहा—“मेरा बंदर और मुझसे ही खीं-खीं? यह विश्व नहीं है। डिम्बास्टर है। आजकल यूरोपियन शब्दकोश में विश्व का अर्थ पृथ्वी की दुनिया लिखा हुआ है और यह पृथ्वी नहीं है। यहां मैं तुझे कत्ल कर दूं, तो मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।”
“करके देखो।” हिटलर ने आंखें निकालते हुए खीं-खीं की और एक दासी के हाथ से जाम लेकर चुस्की लगाते हुए कहा—“यहां के जांगली मुझे भगवान मानते हैं। तुम्हारी तिक्का-बोटी कर देंगे।”
“चाहे कर दें। पर मैं अपने पालतू बंदर को नाचते हुए नहीं देख सकता। हे हनुमान जी। तुमने तो कभी नाच नहीं दिखाया?...हर समय राम जी के फरमाबरदार बने रहे.. फिर तुम्हारा यह वंशज क्यों नाचने की जिद पर अड़ा हुआ है?” वृन्दा महाराज ने ऊपर हाथ उठाते हुए रो देने वाले अंदाज में कहा।
“तुम्हारी छाती क्यों फट रही है?” हिटलर ने आंखें निकालीं—“मैं तो तुम्हारी चोटी देखकर नहीं जलता?”
“तू जलेगा, तो डिम्बास्टर का भगवान ही मालिक है। आग छूते ही बंदर बे-कंट्रोल हो जाता है। इतना उछलता कूदता है कि अपनी आग चारों ओर फैला देता है। लंका का सत्यानाश ही कर दिया। वह तो रावण ही भला आदमी था वरना तोप से उड़ा देता।”
“अबे।” विनोद, जो कुर्सी पर अधलेटा-सा नींद की झपकी ले रहा था, तड़पकर वृन्दा महाराज पर बिगड़ा—“यह क्या बकवास कर रहा है तू? सिद्ध कर कि रावण के जमाने में तोप थी। तोप तो भारत में अकबर लाया था।”
“रावण भारत का नहीं, लंका का राजा था।” वृन्दा महाराज ने बुरा-सा मुंह बनाया—“फिर जब उसके पास हवाई जहाज था, तो तोप भी जरूर रही होगी। यह तो स्वयं सिद्ध है।”
“यह कैसा तर्क है?” विनोद ने आंखें निकाली—“भला हवाई जहाज का तोप से क्या सम्बन्ध?”
“यह यूरोपियन तर्क-प्रणाली है। देखो बॉस! मैं तुम्हें समझाता हूं। पहले तोप का अविष्कार हुआ, फिर हवाई जहाज का। अब यदि रावण के पास हवाई जहाज था, तो तोप भी जरूर रही होगी। यह तो हो ही नहीं सकता कि अंडा का इज्ञान न हो और मुर्गी का इज्ञान हो जाए। जब यूरोपियनों ने रावण को हवाई जहाज बनाना सिखा दिया था, तो तोप बनाना भी जरूर सिखाया होगा।”
“यूरोपियनों ने, अबे! रावण के जमाने में यूरोपियन कहां से आ गए?”
“यह रिसर्च का विषय है। अभी मैंने इस पर सोचा नहीं है। वैसे आए जरूर होंगे। न आए तो रावण को हवाई जहाज का ज्ञान कैसे हुआ? असभ्यों और जांगलियों को हवाई जहाज के बारे में सूझ ही नहीं सकता था। मैं तो कहता हूं कि कणाद को परमाणु विज्ञान की जानकारी देने वाला भी कोई यूरोपियन ही था।”
“कणाद ईसा से दो हजार वर्ष पहले उत्पन्न हो गए थे।” विनोद ने मुंह बनाया।
“इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। जब आपने जन्म से सात हजार वर्ष पहले पैदा हुए कृष्ण को ईसा ईमान का उपदेश दे सकते हैं, तो कणाद और रावण क्या चीज हैं? मजाल है कि बगैर यूरोपियन के इन्हें किसी वस्तु का ज्ञान हो जाए?”
“यह कैसी बकवास शुरू कर दी तुम लोगों ने?” अन्ना बारागोफ ने, जो अभी-अभी स्नानागार से निकली थी, बिगड़कर कहा—“इस समय यूरोपियन पुराण का क्या काम? यह सोचो कि करना क्या है? अभी हम भयानक खतरे में हैं। तुम क्या समझते हो? उस रहस्यमय दरवाजे से आने वाला रहस्यमय प्राणी यहां की हलचल से अनभिज्ञ होगा?...तुम लोगों ने फिर से काम्बा को जांगलियों का राजा बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। दुश्मन के हाथ में ताकत सौंपने का सिद्धांत मेरी समझ में नहीं आया।”
“तुम भारतीय नहीं हो न?” विनोद ने चहककर कहा—“इसलिए समझ में नहीं आया। हमारा एकमात्र नारा है—शत्रुओं को प्रेम से जीतो।”
“भले ही शत्रु सिर पर चढ़कर नाचने लगे?” अन्ना ने आंखें निकालीं।
“भले ही शत्रु तमाचे मार रहा हो। तुमने महात्मा गांधी को नहीं पढ़ा? नहीं ही पढ़ा होगा वरना ऐसा वाहियात प्रश्न पूछती ही नहीं। मैं तो कहता हूं कि हमें शत्रु समझने वाला कहीं हमारी बात सुन रहा है, तो वह भी समझ ले। हम उसके लात-जूतों को भी खाने के लिए तैयार हैं। हम तो प्रेम के पुजारी हैं, शांति और भाईचारे के पुजारी हैं। हम उनका हर जुल्म हर सितम बर्दाश्त कर लेंगे, बस वह हमें थोड़ा-सा प्रेम दे दें।” विनोद ने अन्ना को आंख मारते हुए कहा।
अन्ना बुरी तरह चौंकी। इसका साफ मतलब था कि कमरे की बातचीत कहीं सुनी जा रही थी। एकाएक उसे विनोद की चतुराई पर हंसी आ गई। शायद इसीलिए वे लोग वहां बेतुकी बकवास किए जा रहे थे।
“शत्रु तुम्हारी इस बकवास को सुन ले, तो तुम्हें पागल समझेगा।”
“गनीमत है। मगर मुझे संदेह है कि वह पागल ही समझ कर सन्तोष नहीं करेगा।”
“तुम ठीक समझे?” अचानक वहां एक मधुर आवाज गूंजी—“डिम्बास्टर के जांगली स्वतंत्र हो गए। हम यहां वास्तविकता जानने आए थे। फिर हमें तुम्हारा ज्ञान हुआ। हम तुम्हें देखने आ पहुंचे। भाखड़ा के जादू को तोड़ने वाला कोई साधारण प्राणी तो हो नहीं सकता।”
“तुम कौन हो? तुम यहां मौजूद हो या कहीं से हमारी बातें सुन रही हो?”
“मैं इसी समय यहां भी हूं और अपने तारे पर भी। दूरियों का मेरे लिए कोई महत्व नहीं।” वह खनकती मधुर आवाज गूंजी—“तुम लोग तो पृथ्वी के वासी हो। डिम्बास्टर में तुम्हारी दिलचस्पी का कारण?”
“तुम तो सर्वज्ञ हो। समझ लो।” विनोद के होठों पर जहरीली मुस्कान फैल गई।
“तुम मेरा मजाक उड़ा रहे हो?” इस बार उस कोमलता में क्रोध था।
“नहीं! तुम अपना जो परिचय दे रही हो, उसके बाद हमें तुम्हारी वास्तविकता का तो ज्ञान होना ही चाहिए।” विनोद मुस्कुराया—“सुनो लड़की! तुम जो कोई भी हो जीनियस हो। मेरा तुम्हारे बारे में अनुमान गलत नहीं था।”
“तुम मेरे व्यक्तित्व से परिचित हो!” उस स्वर में गहरा आश्चर्य था।
“तुम सारिया की देवी हो। अर्चना! तुम हजारों ताश से जीवित हो और सारिया लोगों की मदद करती हो। तुम अलौकिक शक्तियों की स्वामिनी हो।...पर मैं जानता हूं कि तुम सप्तऋषि चक्र के ही किसी ग्रह की लड़की हो।”
“लड़की?” एक कहकहा उभरा—“फिर मैं हजारों ताश से जिंदा कैसे हूं?”
“हर ग्रह के प्राणियों की उम्र में अन्तर होता है। लगता है तुम्हारे ग्रह पर तुम लोगों की उम्र लाखों ताश है।”
उधर चुप्पी छा गई।
“हैलो! क्या सोच रही हो?”
दूसरे ही क्षण वहां हवा में एक आकृति उभरी। अन्ना बारागोफ सहित विनोद अपनी पलकें झपकाना भूल गया। वह छ: फीट की कमसिन लड़की ही थी। पर देवी-देवता का सौंदर्य भी उसके सामने नगण्य था। वह मुस्कुरा रही थी। उसने विनोद की ओर देखा—“तुमने कैसे जाना कि मैं कोई लड़की हूं?”
“मैंने सारिया के सुपर कम्प्यूटर की सारी तरंगों को देखा...सुना है। तुम्हारी आवाज भी सुनी है। तुम कह रही थीं कि यह मेरे कम्प्यूटर को क्या हो गया? अब मैं अपने सारिया की मदद कैसे करूंगी?”
“यहां डिम्बास्टर और आस-पास के गृह में सुपर कम्प्यूटर लग गए, तो मेरा खेलने वाला कम्प्यूटर बेकार हो गया। उसके सिग्नल ही नहीं पहुंच रहे थे।”
“तुम तो खुद को काल-दूरी से परे बता रही थी?”
“वह तो अब हूं। अब तुम्हारा सुपर कम्प्यूटर मुझे नहीं रोक सकता। मैंने अपने गुरु कामा से सिद्धि प्राप्त की है। उस समय तो मैं खिलौने से खेलती थी। अपना कम्प्यूटर ग्राफ निकालकर यहां भेजती थी।”
“तुम्हारी सिद्धि हमारे बारे में क्या बताती है?” विनोद ने उसकी आंखों में झांका।
“मैं तुम्हारी पूरी जन्मपत्री बता सकती हूं। तुम्हारे पिता ब्रिगेडियर...के बारे में वह भी बता सकती हूं, जो तुम नहीं जानते। तुम्हारे बचपन की एक-एक बात बता सकती हूं।”
“अरे...अरे बस करो नानी अम्मा।” विनोद ने घबराकर कहा—“मुझे बड़ी शर्म आ रही है। हे भगवान!”
अर्चना खिलखिलाकर हंस पड़ी। वृन्दा महाराज ने उसे घूरते हुए कहा—“तुम हंसी क्यों? खबरदार! मेरे बॉस पर कोई चक्कर मत चलाना। बेचारा पहले से ही तीन-तीन के बीच है। मैं बाल ब्रह्मचारी हूं। मैं ऐसे आदमी को अपना बॉस नहीं बनाए रख सकता, जिसकी तीन से अधिक प्रेमिकाएं हों।”
“बाल-ब्रह्मचारी?” अर्चना खिलखिलाकर हंसी—“तुम तो इसलिए गार से भागे थे गांव की एक लड़की को छेड़ बैठे थे? फिर बाल ब्रह्मचारी कैसे हुए?”
“अब क्या बताऊं?” वृन्दा महाराज ने ढिठाई से कहा—“उसी दिन से मुझे औरतों से घृणा हो गई। मैं बी०ए० में पढ़ता था। वह मेरे पड़ोस में रहती थी। नजरें मिलाती थी, अदाएं दिखाती थी, नैनो के तीर छोड़ती थी...आंखों ही आंखों में इशारे करती थी। मैं उसके नैनवाणों से लोटन कबूतर हो गया।”
“दिलचस्प कहानी है।” हिटलर ने मुस्कुराते हुए खीं-खीं की—“मैं तो इसे सचमुच बाल ब्रह्मचारी समझ बैठा था।”
“हिटलर के बच्चे।” वृन्दा महाराज ने घूंसा दिखाया—“देख लूंगा तुम्हें।”
“दिलजले को और मत जला।” विनोद ने गम्भीरता से कहा—“पागल हो गया, तो मुसीबत हो जाएगी। हां, बोल! आगे क्या हुआ?”
“बॉस!” वृन्दा महाराज ने रो देने वाले अन्दाज में कहा—“यह पूछो कि मेरी इज्जत का जनाजा कैसे निकला। जब मेरा दिल बेकाबू हो गया, तो मैंने उसे एक प्रेम पत्र लिखा।”
“क्या?” विनोद ने हैरत से उसकी ओर देखा—“प्रेमपत्र लिखना आता है तुम्हें?”
“उस समय आता था।” वृन्दा महाराज ने आंसू पोंछते हुए कहा—“अगले दिन में बहुत डरा हुआ था। पर वह सुबह मेरे गार आयी। मेरी मां से मेरे बारे में पूछा और सीधे मेरे कमरे में आ गयी। मुझे देखकर मुस्कुराई। बोली—“तुमसे इतनी गहरी दोस्ती है। मैं तुमसे मिलने आती हूं। तुम मेरे गार कभी नहीं आते।”
“फिर?” विनोद ने दिलचस्पी से पूछा।
“मैंने कहा...आऊंगा...मगर बारात लेकर। तुम्हें दुल्हन बनाकर सीने में छुपाने और मैंने सचमुच कलेजे में कसते एक चुम्बन जड़ दिया।”
“फिर?”
“मत पूछो बॉस! कयामत आ गयी। वह जोर से तड़पी, फिर एक भयानक चीख गूंजी। वह मुझे धक्का देकर रोती-चीखती कमरे से निकल गयी। मैं तो खड़े-खड़े शर्म से पानी हो गया। माता-पिता ने ऐसे ऐसे ताने दिए कि दिल खून के आंसू रोने लगा। मुझे विश्वास हो गया औरत का नाम ही फरेब है। यह वह मायाविनी है, जिसका कोई रूप विश्वसनीय नहीं है। मैं किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहा। मेरी इज्जत सरेबाजार लुट गयी। बस हमेशा के लिए गार छोड़ दिया और हनुमान जी का भक्त बन गया।”
“झूठ बोलता है यह।” हिटलर ने गम्भीरता से कहा—“मैंने किसी हनुमान भक्त को कभी शराब पीते नहीं देखा।”
“अबे! मैं भैरवानन्द का भी तो भक्त हूं?” वृन्दा महाराज ने आंखें निकालीं—“फिर जब हनुमान जी के वंशजों को परहेज नहीं है, तो भक्त क्यों परहेज करें?”
“बंदर भी शराब नहीं पीता। वह तो आदमी की संगत में भ्रष्ट हो गया। खासकर तुम्हारी संगत में।”
“कोई आ रहा है।” अर्चना ने कहा और गायब हो गयी।
इसी समय भैरवानन्द ने प्रवेश किया।
विनोद उठकर खड़ा हो गया।
भैरवानन्द के चेहरे पर चिन्ता थी। उसने कहा—“असली चित्रलेखा भी पृथ्वी से गायब है। उसे महल से उठा लिया गया है। पावर जोन ने उन लोगों को रोकने की कोशिश की, पर नाकाम रहा। इन्द्रजीत पागल हो रहा है।”
“यह तो बहुत बुरा हुआ।” विनोद भी घबरा गया—“चित्रलेखा घरेलू संस्कार की औरत है। फिर महारानी है। वह अपना कोई अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकती।”
“मेरी भी चिन्ता यही है। मुश्किल यह है कि वह इस ब्रह्माण्ड में नहीं है। किसी और आयाम में पहुंच गयी है। हमें यह भी नहीं पता कि वह कौन-सा आयाम है वरना मैं जान लेता कि वह कहां है?”
“मैं समझा नहीं?” विनोद ने उलझन भरे स्वर में पूछा—“किसी और आयाम का क्या अर्थ है?”
“यह एक ही ब्रह्माण्ड खरबों चैनल में है। जिस ब्रह्माण्ड की हम अनुभूति करते हैं, वह उन जीवों का ब्रह्माण्ड है, जिनकी इंद्रियां हमारे जैसी अनुभूति करती हैं। यदि तारों पर कोई प्राणी है, तो उसका शरीर प्रकाश से सूक्ष्म होगा और उसके लिए हम नहीं होंगे, हमारे लिए वह नहीं होगा। वह इस ब्रह्माण्ड की अनुभूति भी दूसरे रूप में करेगा। इस प्रकार यह ब्रह्माण्ड सूक्ष्मता के खरबों स्तर पर विभाजित है यानी इस एक ही ब्रह्माण्ड में खरबों ब्रह्माण्ड समाहित हैं।”
“यह किसी जादूनगरी की जादूनगरी ही है बच्चे। तुम जिस संसार में जी रहे हो, उसका कोई अस्तित्व नहीं है। यह तो तुम्हारी इंद्रियों की अनुभूति का संसार है...खैर! यह समय बहस करने का नहीं है। तुम लोग तैयार होकर आ जाओ। आज...सारटा...सारिया एवं जांगली तीनों का राज्याभिषेक होने वाला है। सबसे पहले तो हमें इन दोनों ग्रहों को सुरक्षित करना है, फिर चित्रलेखा को ढूंढने का काम किया जाएगा। सुनो लड़की। अदृश्य हो जाने से शरीर की तरंगें गायब नहीं हो जातीं। मुझे तुम्हारी उपस्थिति का एहसास है, इसलिए सामने आ जाओ। हमसे तुम्हें कोई खतरा नहीं है।”
वातावरण में एक विस्मय से भरी सिसकारी उभरी, फिर अर्चना वहां प्रकट हो गयी। उसके चेहरे पर घोर आश्चर्य था। उसने भैरवानन्द की ओर देखा, फिर तुरन्त चौंकी। उसने कहा—“आप?”
भैरवानन्द मुस्कुराया।
“क्षमा कीजिए गुरुदेव।” अर्चना ने हाथ जोड़कर सिर झुकाते हुए कहा।
“तुम कामा की शिष्या हो न?” भैरवानन्द मुस्कुराया।
“जी हां।”
“कैसा है कामा?”
“अच्छे हैं। वे आपको बहुत याद करते हैं।”
“तुम तो सारिया की देवी हो। क्या उत्सव में नहीं आओगी?”
“मेरा वहां आना उचित नहीं होगा गुरुदेव। मैं उनकी देवी हूं। देवी प्रकट रूप में किसी उत्सव में शामिल नहीं होती।”
“ठीक है। तुम लोग बातें करो।” भैरवानन्द ने कहा और बाहर निकल गये।
“तुम भैरवानन्द को कैसे जानती हो?” विनोद ने अर्चना की ओर देखा।
“ये गुरु कामा के गुरु भाई हैं। उनसे बड़े...अब मुझे चिन्ता होने लगी है।”
“किस बात की?”
“कामा ने कहा था कि हाजरा नाम का एक प्राणी इस ब्रह्माण्ड के ऋण ध्रुव (नेगेटिव पोल) के पास के तारे के एक ग्रह पर रहता है। उसने कई प्रकार की महाशक्तियों को सिद्ध कर रखा है। वह ब्रह्माण्ड के उस रास्ते को खोजने के लिए सिद्धि प्राप्त कर रहा है, जिससे वह सभी स्तर पर जा सके। ऐसा हो गया तो वह ब्रह्माण्ड का काला बादशाह होगा। अब ऐसा लगता है कि उसकी नजर तुम लोगों पर पड़ गयी है। कारण मुझे मालूम नहीं है, परन्तु तुम लोग भयानक खतरे में हो।”
“वह तो अपनी तकदीर में ही लिखा है।” विनोद ने गहरी सांस ली—“पैदा होते ही खतरों का सिलसिला शुरू हो गया था। छोड़ो यार। यह बताओ! तुम तो हमारे साथ हो न?”
“मैं ही नहीं, मेरा गुरु भी तुम्हारे साथ है। लेकिन भैरवानन्द और कामा के रहते मेरी औकात ही क्या है?”
“इस प्रकार तो मैं कुछ भी नहीं हूं।” विनोद मुस्कुराया—“पर किसी आततायी के सामने गिड़गिड़ाने से तो अच्छा है कि उससे दो-दो हाथ कर लिया जाए।”
“चिन्ता न करो बॉस।” वृन्दा महाराज ने सीना तानते हुए कहा—“मैं तुम्हारे साथ हूं।”
“अब लो।” हिटलर ने खीं-खीं करते हुए मुंह बनाया—“आप तो जैसे वीर हनुमान हैं। लंका फतेह कर लेंगे।”
“तुम लोग तो प्रेम पुजारी हो?” अन्ना ने व्यंग से कहा—“फूल बरसा देना।”
“आजकल गालियां बरसाने का रिवाज है और हमारे नेताओं ने हमें गालियां सहने योग्य बना भी दिया है। अपवाद में केवल भाई या पड़ोसी की गाली है।” विनोद ने चहककर कहा—“हमारा देश महान है। हम केवल आपस में लड़ते रहते हैं। बाहरी दुनिया में तो हमारा शांति का कबूतर उड़ता है।”
इसी समय बाहर जोरदार शोर उभरा। अर्चना ने विनोद से कहा—“मैं जा रही हूं। तुम मेरी यह अंगूठी पहन लो। जब भी मुझे पुकारना हो, इस नग को घुमाकर पुकारना। मैं हाजिर हो जाऊंगी।”
वह गायब हो गयी।
वहां मौजूद सारिया दासियां थरथर कांपती औंधे लेटी थीं। अर्चना के जाते ही वे विनोद के कदमों पर लेट गईं। वे उनकी बातचीत समझ नहीं सकी थीं। वह तो केवल इतना जानती थीं कि विनोद के कुछ कहने पर उनकी वह देवी प्रकट हो गयी थी, जिसके लिए न जाने कितने लोग प्रयत्न कर रहे थे।
“यय...यह...क्या...अरे बाप रे! बचाओ।” विनोद ने उनसे पैरों को छुड़ाते डपटकर कहा—“यह क्या बदतमीजी है?”
¶¶
1 review for Simple Product 007
Additional information
Book Title | Rehesamay Chakravyuh : रहस्यमय चक्रव्यूह |
---|---|
Isbn No | |
No of Pages | 224 |
Country Of Orign | India |
Year of Publication | |
Language | |
Genres | |
Author | |
Age | |
Publisher Name | Ravi Pocket Books |
Related products
-
- Changez Khan : चंगेज खान
-
10048
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus