मौत की बांहों में
अनिल सलूजा
“एक बार फिर बलराज गोगिया हाथ आते-आते बच गया।”
“कैसे...?”
“शिन्दे को कोई गुमनाम कॉल मिली थी...जिसमें फोनकर्ता नहीं कहा था कि बलराज गोगिया शिव मन्दिर के पीछे वाले खण्डहरों में अपने एक साथी के साथ छुपा हुआ है।”
“फिर...?”
“वह फौरन वहां पहुंचा...मगर बलराज गोगिया पर काबू ने ही पा सका उल्टे बलराज गोगिया उसके माथे पर ईंट मारकर अपने साथी के साथ फरार हो गया।”
“और उसके साथ जो मातहत गए थे...क्या वे भी बलराज गोगिया को नहीं पकड़ सके...?”
“वह अकेला ही गया था।”
“बेवकूफ...।” थापर ने मुंह बनाया—“पता भी है कि बलराज गोगिया किसी अकेले के बस का रोग नहीं...फिर भी अकेला गया...जबकि उसे चाहिए था कि कम-से-कम बीस सिपाही साथ ले जाता। नम्बर बनाने के चक्कर में मात खा गया बेवकूफ। अब कहां है वो...?”
“अभी तो अस्पताल में है। शाम को छुट्टी हो जाएगी...बस माथा ही फटा है उसका...साथ में ठोड़ी पर भी चोट आई है।”
“शाम को उससे मिलना तू...।”
“यस बॉस...।”
“उससे पूछना कि बलराज गोगिया ने अब कौन-सी सूरत बना रखी है और उसके साथी के बारे में भी पूछना कि वह कौन है...अगर वह उसे नहीं जानता तो उसका हुलिया पूछना। हकूमत शाह ने बता दिया है न उसे कि बलराज गोगिया की पीठ पर उसका हाथ है।”
“जी नहीं...अभी उसे इसका नहीं पता।”
“उसे बोल देना। वह हकूमत शाह और उसकी सारी फैमिली को जानता है। उससे कहना कि उसकी फैमिली का कोई मेम्बर दिखे तो वह उसे फौरन पकड़ ले और फौरन तुझे फोन कर दे।”
“यस बॉस...!”
“एक बार...सिर्फ एक बार उसका पता मालूम हो जाए...फिर मैं बताऊंगा उसे कि थापर क्या चीज है?”
कहते हुए थापर ने दांत किटकिटाये।
अजगर सिंह कुछ नहीं बोला...बस उसे देखता रहा।
इस वक्त दोनों थापर के होटल गोल्ड की सबसे ऊपरी मंजिल में उसके ऑफिस में आमने-सामने बैठे थे।
थापर ने अपनी सिंहासननुमा कुर्सी पर बैठे-बैठे ही पहलू बदलाव और एक लम्बी सांस छोड़कर टेबल पर रखा बॉल पेन उठाकर कुर्सी की पुश्त से टेक लगाई और उल्टे पेन को अपने माथे पर रगड़ने लगा।
“यह तो अब स्थापित हो चुका है कि...।” वह सोचपूर्ण स्वर में बोला—“बलराज गोगिया की पीठ पर हकूमत शाह एण्ड फैमिली का हाथ है।”
“यस बॉस...!”
“अब सोचने वाली बात यह है कि बलराज गोगिया और हकूमत शाह को आपस में किस ने मिलाया...? ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि हकूमत शाह बलराज गोगिया को पहले से जानता था, क्योंकि अगर ऐसा होता तो जब हमारी हकूमत शहर से गैंगवार हुई थी...तभी बलराज गोगिया सामने आ जाता। बलराज गोगिया का हकूमत शाह का यार बनना यह बताता है कि कोई ऐसा है जो उन दोनों से वाकिफ था और उसी ने दोनों के बीच दोस्ती डलवाई।”
“आपकी बात ठीक है बॉस, मगर...।”
“मगर क्या...?”
“अगर हमें यह पता चल भी गया तो उसका क्या फायदा...?”
“अरे बेवकूफ...।” थापर माथे पर हाथ मारते हुए बोला—“उससे हमें बलराज गोगिया का ठिकाना ढूंढने में आसानी होगी।”
“समझा?”
अजगर ने हड़बड़ाकर सिर हिलाया।
थापर पैन को मुंह में डाल उसे दांतो के बीच घुमाने लगा।
अजगर भी सोच रहा था।
करीब दो मिनट बाद अजगर ने खामोशी को तोड़ा।
“बॉस...।”
थापर सोचों में से निकला और प्रश्नभरी निगाहें उसके चेहरे पर स्थिर कीं।
“कुछ आया दिमाग में...?”
“इतना तो तय है बॉस कि...।” अजगर अपनी आवाज में आदर का पुट लाते हुए बोला—“जिसने भी हकूमत शाह और बलराज गोगिया को एक किया है...वह आपका कोई ऐसा दुश्मन है जो आपकी मौत का तलबगार है...मगर उसके पास ताकत नहीं...जो वह अपनी इच्छा पूरी कर सके।”
“तो...?”
“उसी ने बलराज गोगिया और हकूमत शाह में दोस्ती कराई है।”
“हकूमत शाह को तो छोड़ो। बलराज गोगिया की सोच। वह मेरे उस दुश्मन का दोस्त था और जिसका दोस्त बलराज गोगिया हो...तू कहता है कि उसके पास ताकत नहीं। अकेला बलराज गोगिया पूरी फौज की ताकत रखता है। वन मैन आर्मी है वह...समझा?”
“जी..।”
“ऐसे में यह कैसे हो सकता है कि मेरी मौत के तलबगार ने बलराज गोगिया और हकूमत शाह को दोस्त बनाया है...जबकि वह उसी वक्त दुश्मनी निकाल सकता था...जब मैंने उसका कुछ बुरा किया था। वह बलराज गोगिया को कहकर मेरे खिलाफ जंग छेड़ सकता था।”
“आप ठीक कह रहे हैं बॉस...मगर...।”
“मगर क्या...?”
“आपने यह नहीं सोचा बॉस कि बलराज गोगिया तो एक भटकती आत्मा है। आज वह इस शहर में है तो कल किसी और शहर में होगा। वह दर-दर भटकता कुत्ता है जो पुलिस से बचता हुआ कभी यहां सिर छुपा रहा है...कभी वहां।”
“तो...?”
“आपके उस दुश्मन की ताकत तो कुछ भी नहीं हुई न। उसकी ताकत तो अब बनी जब उसे पता चला कि बलराज गोगिया मुम्बई में आ गया है। बलराज गोगिया की यहां मौजूदगी से ही उसके दिल में आपके प्रति सो रही दुश्मनी फिर से जाग उठी। वह हकूमत शाह के बारे में भी जानता था...हो सकता है, वह शाह का ही आदमी रहा हो। बस उसने दोनों की यारी करा दी...और बना ली ताकत।”
सुनकर थापर पहले तो चौंका...फिर उसकी आंखों में सोचें उभर आई। उसके दांतों में घूमकर फड़-फड़ करता पैन वहीं रुक गया।
“मुझे लगता है कि तू ठीक कह रहा है। अवश्य ही ऐसा हुआ होगा।” वह सोच भरे स्वर में बोला—“मगर हमारा वह दुश्मन कौन हो सकता है?”
“किसी गैंगस्टर से तो बलराज गोगिया की दोस्ती हो नहीं सकती बॉस...!”
“क्यों...?”
“अगर होती तो वह गैंगस्टर बनते ही ढिंढोरा पीटकर ऐलान करता कि बलराज गोगिया उसका यार है। वह बलराज गोगिया से अपनी दोस्ती को कैश कराने की कोशिश जरूर करता...तब वह सबकी निगाहों में आ जाता।”
“तू ठीक कह रहा है, आगे बोल...।”
“बलराज गोगिया का दोस्त हमारा कोई ऐसा दुश्मन है बॉस जो कि एक साधारण इंसान की जिन्दगी जी रहा है।”
“कोई साधारण आदमी हमारा दुश्मन कैसे बन गया...?”
“हो सकता है, हमने किसी का कुछ बिगाड़ा हो।”
“ऐसे तो हमने कईयों का बिगाड़ा है।”
“उन्हीं में से हमारा कोई ऐसा दुश्मन है, जिसकी दोस्ती बलराज गोगिया से थी...और उसने अब बलराज गोगिया के आने के पश्चात अपनी दुश्मनी निकालनी शुरू की है।”
थापर ने समझने वाले अन्दाज में सिर हिलाया और पैन को मुंह से निकालकर टेबल पर उसे ठोकने लगा।
“कौन हो सकता है वो?” वह बड़बड़ाया।
अजगर कुछ नहीं बोला...बस उसे देखता रहा...जैसे वह उसी से जानना चाहता हो कि वह कौन हो सकता है।
थापर कुछ देर तक तो टेबल पर पैन ठकठकाता रहा...फिर एकाएक ही उसका पैन रुका और निगाहें अजगर के चेहरे पर जम गईं।
“पिछली बार बलराज गोगिया मुम्बई में कब आया था?” उसने पूछा।
“दो-तीन महीने तो हो ही गए होंगे।”
“यानि हमारा वह दुश्मन इन्हीं दो-तीन महीनों में ही बना है।” बोला थापर—“क्योंकि अगर दुश्मन पहले का होता तो बलराज गोगिया पिछली बार ही हम पर हमला बोल देता।”
“आप ठीक कह रहे हैं बॉस...और आपकी जानकारी के लिए याद दिला दूं हकूमत शाह से हमारी गैंगवार हुए भी लगभग इतना ही वक्त हुआ है।”
“अभी हकूमत शाह की मत सोच...अभी सिर्फ हमारे उस दुश्मन की तरफ ध्यान दे।”
“जी।” अजगर पहलू बदलते हुए बोला।
थापर ने पहलू बदला और बोला—
“तू इस बात का पता लगा कि पिछले तीन महीनों तक हमने किस-किस की ऐसी-तैसी फेरी है।”
“यस बॉस...!”
“कब तक पता लगा लेगा?”
“मैं अभी इस काम पर नम्बर को लगाता हूं...वह ऐसे कामों में तेज है। उम्मीद है कि सुबह तक आपको रिपोर्ट मिल जाएगी।”
थापर कुछ नहीं बोला...बस सहमति में सिर हिला दिया।
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