रीमा भारती सीरीज
मर्दखोर
रीमा भारती
शाम के साये ढल चुके थे।
रीमा भारती ने टैक्सी से उतरकर चंद कदम का ही फासला तय किया था कि उसने दो अजनबी आदमियों को अपनी तरफ बढ़ते हुए देखा। यह देखकर वह चौंक गयी।
वो नीमअंधेरे में ही अचानक प्रकट हुए थे। रीमा भारती को यह अनुमान लगाने में जरा भी देर ना लगी कि उनके इरादे नेक नहीं थे। उसने सतर्कता भरी नजर से इधर-उधर देखा। टैक्सी जा चुकी थी और सड़क पर उन दोनों के अलावा कोई और दिखायी नहीं दे रहा था। बहुत दूर सामने स्ट्रीट लैम्प की रोशनी जगमगा रही थी।
उसने कनखियों से एक बार फिर उन दोनों का निरीक्षण किया। वो दोनों अब उसके दायें-बायें पहुंच गये थे और फिर उसके साथ कदम से कदम मिलाकर यूं चलने लगे, मानों वो तीनों इकट्ठे कहीं जा रहे हों। बायें तरफ चलने वाला थोड़ा छोटे कद का था, तो दायें तरफ वाला एक कद्दावर पहलवाननुमा इन्सान था। उसके चेहरे पर छायी कठोरता उसके संगदिल होने की प्रतीक थी। कद्दावर पहलवान ने रीमा भारती को शांत स्वर में सम्बोधित करते हुए कहा—
“कोई ऐसी हरकत मत करना मिस रीमा भारती कि किसी देखने वाले को किसी प्रकार की शंका करने का अवसर मिले।”
उसकी आवाज उसकी कद-काठी के हिसाब से ही भारी थी, वह अपनी बात जारी रखते हुए कहता रहा—
“हम तुम्हें कोई नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते—मित्रतापूर्ण अंदाज में इसी प्रकार हमारे साथ चलती रहो।”
आखिर रीमा भारती ने पूछ ही लिया—
“तुम लोग कौन हो...और मुझसे क्या चाहते हो?”
रीमा भारती ने स्वयं को सम्बोधित करने वाले का एक बार गौर से फिर जायजा लिया। वह एक स्वस्थ शरीर का स्वामी था। उसने उम्दा किस्म का बेहतरीन सूट पहन रखा था। तेल में चुपड़े हुए बाल और भारी मूंछों ने उसके चेहरे को किसी हद तक बहुत खौफनाक बना दिया था।
रीमा भारती उनके साथ चलने पर मजबूर थी।
दूसरे—छोटे कद के आदमी ने भी कीमती सूट पहन रखा था। लेकिन जिस बेहूदगी से वह सूट पहना गया था, उसे देखकर लगता था कि जैसे किसी देहाती को जबरदस्ती वह सूट पहना दिया गया था।
तब उसने रीमा भारती को जवाब दिया—
“हमारा बॉस तुमसे बात करना चाहता है।” इस बार जवाब देने की बारी छोटे कद वाले आदमी की थी। उसकी आवाज को सुनकर लगता था कि वह नाक से बोलने वाला आदमी था।
“प्लीज—दायीं ओर को चलो।” उसने रीमा भारती को अगला निर्देश दिया।
रीमा भारती यह जानने के लिये बहुत बेचैन थी कि वो कौन था, जिससे वो उसको मिलाना चाहते थे? उसने उनको साथ चलते हुए दायीं ओर मुड़ना पड़ा। वैसे रीमा भारती अगर ना मुड़ना चाहती, तो कोई उसे विवश नहीं कर सकता था। वह उन दोनों से आसानी से निपट सकती थी। लेकिन उसने खामोशी इख्तियार करना ही उचित समझा।
उसने सोचा, कुछ देर बाद खुद ही पता चल जाएगा कि क्या होने वाला है।
सड़क के अगले मोड़ पर उसे एक कार खड़ी दिखायी दी। जिसकी हैडलाइट एक बार जलकर बुझ गयी थी। रीमा भारती को यह समझने में देर ना लगी कि यह सिग्नल उन्हीं के लिये था।
कार के निकट पहुंचने पर उसकी खिड़की का शीशा नीचे सरकने लगा। रीमा भारती ने खिड़की के अन्दर झांककर देखा तो उसकी आंखें पलकें झपकना भूल गयीं। वह स्तब्धता की स्थिति में कार में बैठे व्यक्ति को देखने लगी। उस कद्दावर आदमी ने कहा था कि उसका बॉस उससे मिलना चाहता था। बॉस के नाम पर रीमा भारती की कल्पना में किसी बूढ़े खुर्राट व्यक्ति की छवि उभरी थी। जबकि कार में बैठी हुई हस्ती एक कोमल, सुन्दर तथा आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी, गजाला आंखों वाली एक हसीन बाला थी।
पहली ही नजर में रीमा भारती उसे पहचान चुकी थी।
उसने झट कार का दरवाजा खोला और उसके पास बैठती हुई आश्चर्य मिश्रित प्रसन्न स्वर में बोली—
“तुम यहां?”
“हां! आ जाओ।” उस परी समान सुन्दर युवती ने अपने स्थान से सरककर रीमा भारती को बैठने की जगह देते हुए कहा। उसके होंठों पर कोमल मुस्कान थिरक रही थी।
“यह सब क्या है?” रीमा भारती का आश्चर्य अभी कम नहीं हुआ था—“और तुम यहां कैसे? तुम तो दून स्कूल से पढ़ाई समाप्त करने के बाद अपने देश अफ्रीका चली गयी थीं?”
यह सुनकर वह सुन्दर युवती मुस्करा उठी।
“तुम आराम से बैठो तो सही। मैं सारी बात बता दूंगी।” उस सुन्दर युवती ने गम्भीर मुस्कान के साथ कहा। फिर बाहर खड़े अपने दोनों साथियों को सम्बोधित करते हुए बोली—
“तुम लोग दूसरी गाड़ी लेकर कोठी पर पहुंचो। मैं मिस रीमा भारती को अपने साथ लेकर आ रही हूं।”
यह कहने के साथ ही उसने कार का दरवाजा बन्द कर दिया और ड्राइवर को गाड़ी आगे बढ़ाने का निर्देश दिया।
कार का इंजन पहले से ही स्टार्ट था। उसने गति पकड़ी तो रीमा भारती ने प्रश्नवाचक नजरों से अपने सामने बैठी उस युवती की ओर देखा, जिसके चेहरे पर अब गम्भीरता के चिन्ह उजागर हो चुके थे।
¶¶
“कुछ पीना पसंद करोगी?” चलती हुई कार में छाई खामोशी को तोड़ते हुए रूपसी बाला ने रीमा भारती से पूछा।
“क्यों नहीं...।” रीमा भारती सहमति से सिर हिला दिया।
उसने यह पूछने का कष्ट नहीं किया था कि उसे कहां ले जाया जा रहा था और क्यों ले जाया जा रहा था?
वह पूछती भी कैसे? आखिर उसे कार में ले जाने वाली कोई अजनबी लड़की नहीं थी। वह उसकी सहपाठिनी वैशाली शम्बोला थी, जो अफ्रीका के किसी देश की रहने वाली थी। उन दोनों ने दून में साथ-साथ ही शिक्षा प्राप्त की थी।
वैशाली अफ्रीका के शहर टकरागोची से लगभग ढाई सौ किलोमीटर दूरी के फासले पर स्थित शम्बोला कबीले से ताल्लुक रखती थी। उसके साथ रीमा भारती की बहुत-सी मनमोहक यादें जुड़ी हुई थीं। वैशाली अपने विद्यार्थी जीवन में दून स्कूल में केवल रीमा भारती से ही सम्बन्ध रखती थी। वह उससे इतना प्रभावित थी कि अक्सर वह रीमा भारती से एकान्त में घण्टों बातें किया करती थी।
मगर रीमा भारती यह सोच रही थी कि आखिर वैशाली को उससे ऐसा क्या काम पड़ गया...जो उसे वहां आना पड़ा?
इधर रीमा भारती की सहमति सुनकर वैशाली ने अपने पहलू में लगा हुआ एक बटन दबा दिया। दोनों खिड़कियों और पिछले शाशे के सामने गहरे रंग के रेशमी पर्दे तन गये थे। उसी रंग का एक मखमली पर्दा ड्राइवर और पिछली सीट के मध्य की दीवार की तरह आ गया। उसके साथ ही छत पर एक छोटा सा बल्ब भी जल उठा। जिसके प्रकाश में वो एक-दूसरे को सरलता से देख सकती थीं।
वैशाली ने एक और बटन दबाया तो सामने वाली सीट की पुश्त से एक छोटा-सा काउन्टर बाहर निकल आया। वैशाली ने एक छोटी बोतल उठाकर दो जाम तैयार किये और एक जाम रीमा भारती की ओर बढ़ा दिया।
रीमा भारती बड़े ध्यानपूर्वक यह सब देख रही थी। उसे प्रसन्नता इस बात की थी कि शराब उसकी मनपसंद ब्रान्ड की थी। दो घूंट लेने के बाद रीमा भारती ने अपनी जेब से सिगरेट केस निकालकर दो सिगरेट सुलगा लिये। एक उसने वैशाली की ओर बढ़ा दिया और दूसरी में खुद कश लगाने लगी। साथ ही साथ वह वैशाली का जायजा भी लेती जा रही थी।
स्कूल छोड़ने के बाद रीमा भारती की वैशाली से यह पहली मुलाकात थी। उम्र के साथ-साथ वह कुछ और भी भीमकाय हो गयी थी। उसके सलीके से कटे हुए स्याह बाल, कंधों पर झूल रहे थे। जिस्म पर स्याह वैलवेट की जैकेट और टाइट फिटिंग वाली स्कर्ट घुटनों से ऊंची थी। गले में हीरे-मोतियों का हार अपनी आभा बिखेर रहा था।
वैशाली भी उसे निगाहों से तोल रही थी। उसके चेहरे पर एक अनोखी गम्भीरता छाई हुई थी।
“तुमने मेरी बात का जवाब नहीं दिया?” इस बार खामोशी को रीमा भारती की आवाज ने तोड़ा था।
“कौन-सी बात?” वैशाली ने पूछा।
“तुम इस प्रकार अचानक यहां कैसे आ गयीं...और आ ही गयी थीं तो इस नाटकीयता की क्या आवश्यकता थी? तुम मेरा पता जानती थीं, सीधे-सीधे वहीं चली आतीं। तुम्हारा इस प्रकार मुझे पकड़कर बुलवाना समझ में नहीं आया?” रीमा भारती ने कहा।
रीमा भारती अपने प्रश्नों का उत्तर जानने के लिये बेचैन थी।
वैशाली ने ध्यानपूर्वक रीमा भारती के प्रश्नों को सुना, फिर अपने गिलास में बाकी बची शराब को अपने हलक में उड़ेला और गिलास मुंह से हटाकर बोली—
“यह सच है कि मैं तुमसे अचानक मिली हूं। लेकिन यह भी सच है कि तुमसे मिलने के लिये मैंने बहुत सोच-विचार किया है और योजनाबद्ध तरीके से यहां आयी हूं।”
यह सुनकर रीमा भारती कुछ गम्भीर हो गयी।
“ऐसी क्या बात है? तुम मुझे कुछ परेशान दिखायी दे रही हो?” रीमा भारती ने उसके गम्भीर स्वर में छिपी पीड़ा को महसूस करते हुए पूछा।
“हां! तुम्हारा अनुमान सही है कि मैं परेशान दिखायी दे रही हूं...और अपनी परेशानी के हल के लिये ही मैं तुम्हारे पास आयी हूं।”
“मैं कुछ समझी नहीं...?” रीमा भारती ने उलझकर पूछा—“तुम जो कहना चाहती हो, वह साफ-साफ और स्पष्ट कहो।”
“क्या तुम्हारे पास मेरी कहानी सुनने के लिये समय है?” प्रत्युत्तर में वैशाली ने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा।
“हां, क्यों नहीं!” रीमा भारती तुरन्त बोली—“तुम मेरी अन्तरंग सहेली हो। अगर मैं तुम्हारी समस्या दूर कर सकी तो यह मेरे लिये सौभाग्य की बात होगी। तुम निःसंकोच अपनी परेशानी मुझे बता सकती हो। मैं हरसम्भव प्रयास करके तुम्हारी परेशानी दूर करने का प्रयास करूंगी।”
“ठीक है।” वैशाली ने एक गहरी सांस ली और फिर एक बटन दबाया तो उसके और ड्राइवर के बीच की दीवार हट गयी । तब ड्राइवर से कहा—
“ड्राइवर, गाड़ी कोठी की ओर ले चलो।”
और अगले ही पल ड्राइवर ने गाड़ी को एक मोड़ दिया और फिर वैशाली द्वारा बताये गये पते की ओर कार दौड़ा दी।
रीमा भारती, वैशाली की कहानी को सुनने के लिये बहुत व्याकुल थी।
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