कौवा बोला काऊं काऊं
मैं करोड़पति बन जाऊं
माया मेमसाहब
मैं जानती थी मेरे साथ क्या होने वाला है?
ऐसा कुछ जो मेरी जिन्दगी को बद-से-बदतर बना देगा।
पर क्यों?
शायद इसलिए कि मैंने एक ऐसे आदमी का कत्ल कर दिया था जिसका इस जमीन पर जिन्दा रहना किसी बोझ से कम नहीं था।
हालांकि मैंने खुद भी उससे कहीं अधिक और उससे कहीं अधिक घिनौने काम किए थे।
आज मैं उस आदमी की करतूतें देखकर अपने आप पर काबू नहीं रख पायी और मैंने उसे रोका। बस मेरा उसे रोकना उसके लिए ऐसा कुछ हो गया था कि वह मुझे एक गंदी गाली दे बैठा।
पागल हो उठी थी में—
खैर! कोई और वक्त होता तो शायद मैं उस गाली को बर्दाश्त कर जाती—
पर उस समय बर्दाश्त करना मेरे लिए कठिन हो गया था।
अब मैं हालांकि पछता रही थी—
मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था।
उसका नाम निकोलस था। विदेशी था। वह खूबसूरत नौजवान ही न था—साहसी और सूझबूझ वाला भी था।
पिछले छः महीनों में उसने अण्डरवर्ल्ड के दिग्गज के दिग्गज जाने-माने वाले लोगों की नाक में नकेल डालकर घुटनों के बल झुकने के लिए मजबूर कर दिया था।
उसके सामने नैल्शन और पीटर डिसूजा ने जिस ढंग से हथियार डाले थे—बात को याद करके ताज्जुब होता था।
नैल्शन और पीटर डिसूजा अण्डरवर्ल्ड के दो ऐसे दिग्गज थे जिन्होंने बड़े-से-बड़े कारनामों में अपनी जीत का डंका बजाया था।
पर नैल्शन ने उन्हें मजबूर कर दिया था कि वह दोनों उसका लोहा माने और उन्होंने माना भी।
बीती रात तब—
जब माया न्यूयॉर्क से लौटी और एयरपोर्ट से साफ-साफ बचकर एक कीमती सामान के साथ अपने फ्लैट पर पहुंची, तो उसे फोन की घण्टी घनघनाती मिली।
“हैलो... माया...!”
दूसरी ओर से अट्टहास सुनकर मेरा माथा ठनक गया।
“कौन बोल रहा है?” मैं गुर्रा उठी।
यह सच था—
मैं उस अट्टहास को पहचान नहीं सकी थी।
“तुम आ गईं न्यूयॉर्क से?”
“कौन हो तुम?” मैं बोखला उठाई।
“अब भी नहीं पहचानी तू माया?”
“नहीं, साफ-साफ बोलो—कौन हो तुम?”
“मैं नैल्शन बोल रहा हूं।”
“ओह! तुम, क्या बात है?”
“तुम फ्लैट पर कैसे पहुंच गईं?”
“मैं जब कभी विदेश से लौटती हूं—तो अपने फ्लैट पर सबसे पहले पहुंचती हूं।”
“तुम्हें यह अपनी आदत बदलनी होगी।”
“सॉरी मिस्टर नैल्शन...मैं ऐसा नहीं कर सकती।”
“शटअप...तुम इसी समय मेरे पास आ रही हो।”
“सॉरी! मैं नहीं आ सकती।”
“माया...!” फोन पर गूंजती आवाज गुर्राहट में बदल गई—“तुम यदि आधे घण्टे के अन्दर मेरे सामने नहीं आ सकीं तो फिर कभी नहीं आ सकोगी।”
“मिस्टर नैल्शन...!”
“डार्लिंग...मेरा नाम नैल्शन है। यदि तुम नहीं आईं तो मेरे आदमी तुम्हारे सामने होंगे—जो तुम्हारी बदतमीजी का सबक तुम्हें सिखाने के लिए मजबूर होंगे।”
मेरे लिए इतना बर्दाश्त करना कठिन ही नहीं असम्भव था। मैं जानती थी—?
नैल्शन अण्डरवर्ल्ड का सुप्रीमो बन गया है। उसके एक इशारे पर वह हो सकता है जिसकी बड़े से बड़ा अपराधी कल्पना भी नहीं कर सकता।
“ओ०के० मिस्टर नैल्शन, मैं आ रही हूं।”
इतना सुनते ही वह हंस पड़ा।
आग लग गई थी मुझे।
खून उतर आया था मेरी आंखों में।
इस तरह की बात—वह भी मुझसे?
मैं एयरपोर्ट से वापस होते हुए सोच रही थी—
फ्रेश होने के बाद डबल पैग व्हिस्की का पिऊंगी। दो-चार सिगरेट पिऊंगी। फिर फोन करके अपने नए-नए बने आशिक विक्की को फोन करूंगी—
“डियर...कम सून तुम्हारी माया सकुशल वापस आ गई है। आओ...अभी काफी रात शेष है। मोहब्बत भरे कुछ लम्हे तुम्हारे साथ गुजारूंगी।”
पर यह सुखद कल्पना चूर-चूर हो गई थी। और उसे चूर-चूर करने वाला था नैल्शन—अण्डरवर्ल्ड का वह कुख्यात कमीना इंसान, जिसके बारे में कहा जाता था—उसकी आंखों में सूअर का बाल है।
मैं जिस तरह अपने फ्लैट के कमरे में घुसी थी—उसी तरह उल्टे पांव वापस हुई थी।
पर गैराज में जाकर कार निकालनी पड़ी। अधिक समय नहीं लगा—पांच मिनट से भी कम समय में मैं कार में बैठी भाग रही थी।
रास्ते सुनसान थे। रात के ढाई बज रहे थे। मैंने स्टेयरिंग पर हाथ मजबूती से रखते हुए रफ्तार बढ़ा दी थी—
इसलिए नहीं कि मैं नैल्शन की धमकी से डर गई थी—बल्कि इसलिए कि मैं उसके सवालों के जवाब उसके मुंह पर देना चाहती थी।
उसे बताना चाहती थी कि मेरा नाम माया मेमसाब है।
और माया उस जैसे अण्डरवर्ल्ड के सुप्रीमो को भी रास्ता दिखा सकती है। माया सभी कुछ बर्दाश्त कर सकती है, लेकिन अपने सम्मान पर ऊपर वाले को भी हावी नहीं होने देना चाहती।
अण्डरवर्ल्ड का सुप्रीमो नैल्शन इस समय शहर की सबसे ऊंची इमारत 'ब्लू स्काई कांपलेक्स' के अण्डरग्राउण्ड हिस्से के एक कक्ष में था।
यह बात चंद लोगों की जानकारी में हुआ करती थी। उन चन्द लोगों में से एक मैं थी।
ब्लू स्काई कंपलेक्स इस समय रात की खामोशी की चादर ओढ़े एकदम शान्त था।
दिन के उजाले में तो यहां आने जाने वालों की भीड़ रहा करती थी। सैकड़ों तरह के बिजनेस ऑफिस बिजी होते थे। हजारों आदमी इस कांपलेक्स के कमरे में कबूतरों की तरह घुसते निकलते रहते थे।
इन्हीं कबूतरों की ओट में अण्डरवर्ल्ड की गतिविधियां सुचारू रूप से चला करती थीं।
विशाल गेट पर खड़े चार सुरक्षा गार्डों में से एक की नजर जैसे ही गेट की ओर मुड़ी कार पर पड़ी। वह करीब-करीब मिमिया-सा पड़ा—बाप रे!
इस बात पर सब चौंके।
और जैसे ही उनकी नजर पड़ी—
उन्हें जैसे करण्ट छू गया, करीब-करीब भागकर उन्होंने गेट खोला।
और मैंने कार भीतर घुसेड़ दी।
हमेशा की तरह मैंने कार इमारत की लेफ्ट साइड में ले जाकर पीछे एक पेड़ के नीचे रोक दी।
उस विशाल इमारत के पीछे मात्र एक ही बरगद का पेड़ था—और जो काफी लम्बे-चौड़े घेरे में फैला था।
उसी के नीचे कार रोककर मैंने बरगद के पेड़ की ओर देखा और फिर गुप्त रास्ते से भीतर हो गई।
सम्भवतः इस रास्ते की जानकारी अभी नैल्शन को भी नहीं थी।
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