कातिल की बारात
राकेश पाठक
“मैं आत्महत्या कर रही हूं करिश्मा जी।”
“आत्महत्या?” बुरी तरह चिहुंकी इन्स्पेक्टर करिश्मा देसाई—मानो अचानक ही कुर्सी की गद्दी में टोपाज के नये ब्लेड उभर आये थे।
“जी हां...।” रिसीवर के इयर फोन से गुमनाम महिला का बोझिल—सा स्वर उभरा—“मैं जहर पीकर अपनी इहलीला समाप्त कर रही हूं।”
“लेकिन...।” इन्स्पेक्टर करिश्मा की सीप—सी आंखें सिकुड़ चलीं—“आप अपनी जान खोना क्यों चाहती हैं?”
“क्योंकि शादी के दस साल बाद भी मेरी कोख में किसी जीव ने अपने पैर नहीं पसारे! बांझ हूं मैं...बांझ...बबूल का वो पेड़...जिस पर कभी कोई कली नहीं खिल सकेगी?”
“लेकिन आत्महत्या करना पाप है।”
“अपने पति को प्यार की निशानी न देना...मेरी समझ में बड़ा पाप है। आप नहीं जानती कि वो मुझसे किस कदर मुहब्बत करते हैं। और मैं अभागिन उनको वारिस भी नहीं दे सकी।”
“सुनो! तुम जो भी हो...।” इन्स्पेक्टर करिश्मा उसे समझाने वाले भाव से बोली—“तुम्हारे आत्महत्या कर लेने से तुम्हारे पति टूटकर बिखर जाएंगे। तुमने ही कहा कि तुम्हारे पति तुम्हें बेइन्तहा मुहब्बत करते हैं। तुम्हे सब्र से काम लेना चाहिये। किसी अच्छी लेडी डॉक्टर से बना ट्रीटमेंट कराओ, भगवान ने चाहा तो तुम जल्दी ही मां बनोगी?”
“मेरी बच्चेदानी में कैंसर था...आप्रेशन करके उसे निकाल फेंका गया। दुनिया की कोई भी ताकत मुझे मां नहीं बना सकती।”
“ओह—।”
¶¶
कुछ देर के सन्नाटे के पश्चात्।
“मैंने अपने पति से कई बार जिद की...कि वो मुझे तलाक देकर दूसरी किसी अच्छी लड़की से शादी कर लें...।” दूसरी तरफ से गुमनाम औरत पीड़ा भरे स्वर में बोली—“लेकिन वो नहीं माने। मेरे सिवाय किसी दूसरी औरत का ख्याल भी जहन में लाना पाप समझते हैं वो! लेकिन भले ही वो हरदम मुस्कराकर मेरा मन बहलाने की भरसक चेष्टा किया करते हों...सन्तान न होने की कसक तो उनके दिल में नासूर बनकर खून के आंसू रुला रही होगी। मेरी बदनसीबियों का फल भला मेरे पति क्यों भुगतें? मैं अगर जिन्दा रहूंगी तो वे कतई भी दूसरी शादी की हामी न भरेंगे। इसलिये मैं आत्महत्या कर रही हूं! आपको फोन करने का मकसद ये है कि मेरी मौत के बाद मेरे पति को पुलिस बेवजह ही तंग न करे। वैसे मैंने मकान का मेन गेट भीतर से बन्द किया हुआ है और सूसाइड नोट भी तैयार कर चुकी हूं। दूसरी बात ये कि मेरे पति इस घड़ी आउट ऑफ स्टेशन हैं। वो पेशे से फोटेग्राफर हैं और एक बारात की वीडियो कवरेज करने दूसरे शहर गये हुए हैं। फिर भी पुलिस वालों की ये गन्दी आदत हुआ करती है कि मृतक के नजदीकी रिश्तेदारों को शक की निगाह से देखती है उन्हें लादने की चेष्टा करती है। मेरी आपसे दोनों हाथ जोड़ कर प्रार्थना हे कि मेरे पति को कतई तंग न करना। गुड बाय...इन्स्पेक्टर...।”
“ठ—ठहरो...।” इन्स्पेक्टर करिश्मा बौखलाकर चीखी—“भगवान के वास्ते अपना नाम और मकान का पता तो बतला दो...हैल्लो...हैल्लो...।”
लेकिन दूसरी तरफ से फोन डिस्कनेक्ट किया जा चुका था।
“ओह...!” करिश्मा ने झुंझलाकर रिसीवर को इन्स्टूमेंट पर पटका और बेबस भाव से सिन्दूर मिले मक्खन जैसी उंगलियों को चटकाने लगी।
¶¶
यकायक ही मस्तिष्क की सिलवटोंदार स्लेट पर कोई विकल्प उभरा तो इन्स्पेक्टर करिश्मा के बला के हसीन चेहरे का तनाव ढीला पड़ता चला गया।
उसने झट से रिसीवर उठाकर टेलीफोन एक्सचेंज का नम्बर डायल किया और फुर्ती के साथ बोली—“अभी थोड़ी देर पहले ही किसी ने डायल हन्ड्रेड रिंग किया था। मुझे जल्दी ही बतलाइये कि फोन कहां से किया गया था?”
“वेट ए मिनट। मैडम...अ...फिफ्टी फाइव नम्बर से किया गया था। ये नम्बर मेरे जानकार प्रकाश गुप्ता का है; जो कि पेशे से फोटोग्राफ्र हैं और उसका स्टूडियों गांधी रोड पर है।”
“लेकिन इतरी रात गए क्या स्टूडियो खुला होगा? प्रकाश तो वैसे भी शहर से बाहर गया हुआ है।”
“वो फोन तो घर से किया गया था मैडम।”
“ओफ्फ...।” वह खार खाते हुए झुंझलाकर चीखी—“इतनी बकवास करने की क्या जरूरत थी फिर। घर कहां है प्रकाश गुप्ता का?”
“रूप नगर में...रिवोली होटल के सामने...।”
“थैंक्स...।” उसने रिसीवर रखने से पूर्व लठ मार भाव से कहा।
¶¶
“ड्राइवर...।” वह जीप में सवार होते हुए उत्तेजित भाव से बोली—“फौरन जीप स्टार्ट करो और जितनी भी तेजी से दौड़ा सकते हो रूपनगर की तरफ दौड़ा दो...।”
जीप में ड्राइवर के साथ एक युवा सब—इंस्पेक्टर पहले से ही बैठा हुआ था, जिसकी वर्दी पर मयूर शर्मा नेमप्लेट लगी थी—वह तनिक चौकन्ना होकर बोला—“क्या बात है मैडम...?”
तब तक ड्राइवर जीप को दौड़ा झुका था।
करिश्मा देसाई ने उसे फोन की बाबत जानकारी दी और फिर ड्राइवर पर बरसी—“और तेज चलाओ राम सिंह। किसी की जिन्दगी का सवाल है।”
जीप हवा से बातें करने लगी और उसका पुराना इंजन खड़खड़ाने लगा।
“क्या हम उसे बचा पायेंगे मैडम?” मयूर शर्मा झिझकते हुए बोला—“शायद उसने फोन रखते ही आत्महत्या कर ली होगी।”
“फिर भी मैं ट्राई कना चाहती हूं।” वह तनिक सख्त व खुरदरे स्वर में बोली—“आत्महत्या करने के लिए फुट भर का कलेजा चाहिये। कोई होशो—हवास ही खो बैठे तो...जान देने में देर नहीं लगती। लेकिन...उसने मेरे से नार्मल मूड में बात की। ऐसी कण्डीशन में इन्सान आत्महत्या करने से पूर्व हजार बार सोचता है। अगर इस कम्बख्त के नसीब में आत्महत्या ही लिखी होगी तो...कोई क्या कर सकता है? ड्राइवर...।”
“सा...सॉरी मैडम। स्पीडो मीटर की सुई दूसरे छोर पर पहुंची हुई है। इससे ज्यादा की गुंजाइश नहीं है।”
¶¶
“ये क्या बेवकूफी करने जा रहे थे तुम बेवकूफ...?” इन्स्पेक्टर करिश्मा ने लपककर मयूर शर्मा के उठे हुए हाथ को पकड़कर नीचे झटक दिया।
“मैं...।” वह सकपकाकर बोला—“मैं कॉलबैल का बटन दबाने जा रहा था।”
“जैसे वो दरवाजा खोलने आ ही जाती...।” वह झुंझलाये भाव से बोली—“मत भूलो कि वो अगर जिन्दा है तो...आत्महत्या की तैयारी करने जा रही है। हमें सेनेटरी पाइप से ऊपर छत पर जाना है और नीचे उतरकर उसे बचाना है। मेरे पीछे आओ...फॉलो मी...।”
मयूर शर्मा उसके पीछे लपकते हुए बोला—“माना कि हम छत के रास्ते से भीतर पहुंच जाते हैं, परन्तु अगर कमरे का दरवाजा भीतर से बन्द हुआ तो...?”
“मेरे विचार से तो नहीं होगा। उसने ये कहा था कि उसने मेन गेट भीतर से बन्द किया हुआ है। ये नहीं कहा कि उसने कमरे का दरवाजा भी भीतर से बन्द किया हुआ है।”
दोनों मकान के पिछवाड़े पहुंचे।
करिश्मा किसी बन्दरिया की भांति ही सेनेटरी पाइप को पकड़कर ऊपर चढ़ती चली गई।
“जबकि सब—इन्सपेक्टर मयूर शर्मा को पाइप पर चढ़ने में थोड़ी दिक्कत हुई—वह जब ऊपर छत पर पहुंचा तो नाक से रेल का इंजन बोल रहा था।
जीने की तरफ लपकते हुए करिश्मा फुसफुसाई—“तुम या तो सिगरेट पीनी छोड़ दो...या नौकरी...।”
¶¶
खुले कमरे में प्रविष्ट होते ही दोनों स्टेच्यु में तब्दील हो गए जैसे—“मयूर शर्मा के मुख से सर्द सिसकारी निकल गई।”
जबकि करिश्मा की हथेलियां मुट्ठियों की शक्ल में भिंचती चली गई—उसकी आंखों में हताशा छलकने लगी।
वह सोफा चेयर पर बैठी हुई थी—उसकी आंखें जैसे उन दोनों को ही घूर रही थीं—ये बात दूसरी थी कि आंखों की पुतलियां बेहरकत थीं और पलकें भी स्थिर थीं।
नीले चेहरे पर पीड़ा के भाव थे और होठों पर ढेर सारे झाग के बुलबुले चिपके हुए थे।
गोद में जहर की खुली हुई शीशी पड़ी थी।
सोफा चेयर के समीप ही गोलाकार टेबल पर खूनी रंग का फोन रखा हुआ था—फोन के नीचे ढेर बड़ा पर्चा व खुला हुआ पेन रखा हुआ था।
छत पर लटका पंखा फुल स्पीड में घूम रहा था, जिसकी बदौलत फोन के नीचे दबा पर्चा फड़फड़ा रहा था।
करिश्मा ने असहाय भाव से कैप उतारकर बगल में दबा ली और पांच मीटर लम्बी सांस उगलने पर आहत भाव से बोली—“किसी पड़ोसी के यहां से फोन करके फॉरेन्सिक टीम को बुला लो।”
¶¶
एक्सपर्ट टीम आ पहुंची।
सबसे पहले पुलिस डॉक्टर ने लाश का मुआयना करके उसकी डैथ का डिक्लेयरेशन किया।
फिर फोटोग्राफर ने करिश्मा देसाई के डायरेक्शन में विभिन्न कोणों से तस्वीर लीं—तब कहीं जाकर फिंगर प्रिंट्स एक्सपर्ट को टेलीफोन, जहर की शीशी व दरवाजे के हैण्डल वगैरा पर से फिंगर प्रिंट्स ओर फर्श पर से फुट मार्क्स ट्रेस करने की जिम्मेदारी सौंपी गई।
डॉक्टर दीवार के सहारे—सहारे होकर सोफा चेयर पर बैठी लाश तक पहुंचा था, वो भी जूते निकाल कर...ताकि फर्श पर से फुट मार्क्स खराब न हों।
फोटोग्राफ्र ने भी ऐसी सावधानी बरती थी।
इस दौरान करिश्मा की तीक्ष्ण दृष्टि बार—बार दीवारों पर थिरकती रही...उसकी आंखों में व्याप्त भावों से लगता था कि जैसे उसे किसी खास चीज की तलाश थी।
“बेचारी...?” मयूर शर्मा अफसोस प्रकट करते हुए बोला—“भरी जवानी में चल बसी! क्या गुजरेगी इसके पति के दिल पर। उसे क्या मालूम होगा कि उसकी बीवी आत्महत्या कर चुकी है।”
“गलत इन्स्पेक्टर मयूर...।” करिश्मा की आंखों में रहस्यमयी भाव डोलने लगे और वह फुसफसाई—“ये आत्महत्या नहीं है। इस औरत की हत्या हुई है।”
मयूर शर्मा चौंककर उछला।
वह विस्फारित नैनों से करिश्मा को घूरने लगा...उस करिश्मा को जिसके जबड़े इस सख्ती से भिंचे हुए थे कि गालों पर दोनों तरफ मेंढक से उभर आये थे।
¶¶
अचानक ही वह जागा और बिस्तर पर उठ बैठा।
उसके सिर में भीषण पीड़ा थी जैसे किसी ने उसके सिर को शिकंजे में फंसाकर शिकंजे को कसना शुरू कर दिया था।
आधी मिनट से भी कम समय में उसका जिस्म ठण्डे पसीने से सराबोर हो चला तथा नसों में दौड़ता हुआ खून जैसे खौलने लगा।
कोई अन्जानी शक्ति दोनों कनपटियों पर जबरदस्त घूंसे से मारने लगी।
धीरे—धीरे उसका जिस्म ऐंठने—सा लगा।
मस्तिष्क लौहार की धौंकनी की भांति फूलता—पिचकता हुआ महसूस होने लगा।
उसकी चढ़ी—चढ़ी सी सुर्ख आंखें दीवार पर लगे पोस्टर पर जाकर स्टीकर की भांति चिपक गईं।
वह एक मॉडल का फोटो था—जिसके खूबसूरत जिस्म पर पानी से भीगी हुई लम्बी—सी कमीज थी, जिसके निचले सिरे को वह झुकी अवस्था में निचोड़ रही थी।
वह युवती साकार रूप में प्रकट हो गई जैसे।
उसने सूखे होठों पर ऐंठ चुकी जिव्हा को फेरा।
वासनामयी आंखें कमीज निचोड़ती युवती के गिरेबान से झांकते उभारों पर गड़ने—सी लगीं।
“देख क्या रहा है तू...।” पता नहीं कि कौन उसके कानों में फुसफुसाया—“लपकर इसे दबोच ले और साली को झंझोड़कर फेंक दे।”
“ये मुझे मनमानी नहीं करने देगी।”
“कैसे नहीं करने देगीं।” अजनबी स्वर फुंफकारें मारने लगा—“साली की गर्दन को ककड़ी की तरह मरोड़ देना...फिर इसका बाप भी मनमानी करने से नहीं रोक पायेगा।”
आचानक ही आंखों की कटोरियां गाढ़े व कतरेदार खून से लबालब भर गई।
नथुने टर्र—टर्र करने वाले मेंढक ने गले की भांति फूलने—पिचकने लगे।
गले की नसें कैंचुओं की भांति उभर आई।
मुख से अजीबो—गरीब गुर्राहट खारिज होने लगी और इसी के साथ हाथों की उंगलियां सूखी लकड़ियों की भांति ऐंठ कर तिरछी—सी होती चली गईं।
बिस्तर से उठते हुए उसने ऐंठी हुई उंगलियों को आपस में फांसकर जो झटके दिये तो ‘कड़...कड़...कड़’ की कड़क आवाज हुई।
वह भूखी चील की भांति ही कमीज निचोड़ने वाली रूपसी पर झपटा और अपनी ही झौंक में दीवार से चिपके पोस्टर से टकराकर फर्श पर ढेर हो गया।
बेहोश होने से पूर्व उसके मुख से घुटी—घुटी सी चीख खारिज हुई थी।
¶¶
admin –
Aliquam fringilla euismod risus ac bibendum. Sed sit amet sem varius ante feugiat lacinia. Nunc ipsum nulla, vulputate ut venenatis vitae, malesuada ut mi. Quisque iaculis, dui congue placerat pretium, augue erat accumsan lacus