कत्ल मशीन
“तेरी झुकी हुई गर्दन ही बता रही है कि तू कामयाब नहीं हो पाया।”
“म....मैं माफी चाहूंगा बास—अभी तक मैं कामयाब नहीं हो पाया। मुझे बस एक हफ्ते का वक्त और दो बाप—म-मैं वादा करता हूं कि मैं एक हफ्ते में कोई-न-कोई सुराग अवश्य ही ढूंढ निकालूंगा।”
“युसुफ खान पहले मुंहमांगा वक्त देता है।” फुंफकार उठा युसुफ खान—“उसके बाद कोई वक्त नहीं।”
“ब....ब....बास।”
हाल में एक दायरे में खड़े व्यक्ति का पूरा जिस्म कांप उठा।
वह दायरा पीले रंग की करीब दो इंच चौड़ी लकीर से बना था—जो कि करीब चार फुट के व्यास का था।
उसके ऐन सामने एक स्टेज पर सिंहासन नुमा कुर्सी पर युसुफ खान बैठा था।
युसुफ खान—करीब पचास साल का सुर्ख चेहरे वाला सिर से पूरी तरह से सफाचट व्यक्ति था। उसकी सफेद दाढ़ी उसके सीने तक पहुंच रही थी—आंखों में इस वक्त ऐसे खूंखार भाव थे कि किसी शरीफ आदमी का उसकी आंखों को देखकर ही हार्टफेल हो जाये। मूंछें सफाचट थीं। लम्बे ऊंचे कद का युसुफ खान इस वक्त सुरमई रंग की सलवार-कमीज पहने हुए था। समाज में बहुत बड़ा रुतबा था युसुफ खान का। सारी दुनिया जानती थी कि वह अण्डरवर्ल्ड का बादशाह है—मगर क्या मजाल जो किसी पुलिस वाले की उसे आंख दिखाने की भी जुर्रत हो जाये। क्या मजाल जो कोई नेता उसकी तरफ उंगली भी उठा जाये।
बड़े लोग उसे अपने यहां फंक्शनों में बुलाना अपना गौरव समझते थे। दस साल पहले तक युसुफ खान इकबालपुर का सिर्फ एक बड़ा गुण्डा था। उस पर दो कत्लों के अलावा लोगों के साथ मारपीट करने के केस चल रहे थे। लोगों से काम करने की सुपारी लेता था वह।
उन्हीं दिनों उसने चुनावों में एक ऐसे नेता का खून कर दिया जिसके जीतने के पूरे चांस थे। तब पूरे शहर में हाहाकार मच गया था और वह गिरफ्तार कर लिया गया था। वह कत्ल उसने दूसरे नेता के कहने पर किया था।
चुनाव हुए—और दूसरा नेता जीत गया। और वो सरकार में मन्त्री बन गया।
मन्त्री बनते ही उसने सबसे पहले युसुफ खान पर से सारे आरोप हटवाकर पुलिस को सारे केस वापिस लेने को मजबूर कर दिया।
युसुफ खान आजाद हो गया। साथ ही उसे यह भी पता चल गया कि राजनीति में कितनी ताकत होती है।
सो उस मन्त्री के दम पर उसने उसके विरोधियों को तो कुचला ही, साथ ही उसने अपना बिजनेस भी बढ़ा दिया।
जमीनों पर कब्जे करके उन्हें महंगे दामों पर बेचना—ड्रग्स का कारोबार—हफ्ता वसूली—बड़ी-बड़ी सुपारी लेना उसके मुख्य धंधे बन गये।
दो साल में वह फर्श से अर्श तक जा पहुंचा। और शहर के गणमान्य व्यक्तियों में उसका शुमार हो गया। लोग उसकी इज्जत करते थे—उसके आगे सिर झुकाते थे। पुलिस भी अब उसे कुछ नहीं कहती थी—बल्कि पुलिस तो उसको प्रोटेक्ट कर रही थी।
और यह सब कुछ हो रहा था उसके ऊपर राजनैतिक हाथ होने से।
अब तक वह राजनीति की ताकत और फायदों के बारे में काफी कुछ जान चुका था। बस थोड़े और तजुर्बे की जरूरत थी उसे।
अब तक उसे जो भी तजुर्बा हासिल हुआ था—उसे देखते हुए उसने फिलहाल चुप रहना ही ठीक समझा। साथ ही अन्दरखाने उसने अपनी ताकत बढ़ानी शुरू कर दी। पब्लिक में वह बड़े सलीके से पेश आ रहा था मगर पब्लिक उसकी हकीकत से वाकिफ थी—लेकिन उसके खौफ से किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह उसके खिलाफ मुंह भी खोल सके। और यही उसकी इज्जत थी। और फिर ढाई साल बाद उसने उस नेता को भी मार डाला—जिसका हाथ उसके सिर पर था।
मगर खुद नहीं मारा उसने उसे—बल्कि पूरी योजना से मरवाया—ऐसे कि किसी को उस पर जरा भी संदेह न हो।
कत्ल के वक्त वह शहर से सैकड़ों मील दूर दिल्ली में था।
मन्त्री की मौत से शहर में काफी हो-हल्ला हुआ।
दिल्ली में ही बैठे हुए युसुफ खान ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर यह ऐलान कर दिया कि वह अपने मन्त्री के हत्यारे को नहीं छोड़ेगा। खुद को बहुत ही दुखी बताया था उसे।
नतीजा—उसका बाल भी बांका नहीं हुआ।
छह महीने बाद वह नये हुए इलैक्शनों में खड़ा हो गया।
उसके गुण्डों ने लोगों के दिल में यह डर बिठा दिया कि अगर युसुफ खान हार गया तो इकबालपुर में खून की नदियां बह जायेंगी। अपनी हार का बदला वह पब्लिक से लेगा।
नतीजा यह हुआ कि वह भारी बहुमत से जीत गया।
उसी के साथ ही उसने अपना काम भी बढ़ा दिया।
सरकार की तरफ से उसे विकास के लिये जो ग्रांट मिलती थी, वह उसके लिये चिड़िया का चुग्गा थी। सो वह पूरा पैसा विकास कार्यों पर लगा देता, जिससे कि इकबालपुर की सड़कें चमकने लगीं। सभी गलियां पक्की हो गईं।
ऐसे में लोग उसकी तारीफ करने लगे। मगर उससे लोगों के मन में उसका डर कम नहीं हुआ था। तारीफ सरकार के कानों में भी पहुंची तो वो गदगद हो गई।
वाकई पूरी राजनीति खेल रहा था वह।
और फिर अगली बार वह पिछली बार से भी ज्यादा वोटों से जीता। और सरकार में मन्त्री भी बन गया।
“बिल्लू....।” युसुफ खान ने आवाज लगाई।
तुरंत दांई तरफ के दरवाजे में से एक साधारण कद-बुत का व्यक्ति भीतर आया और दायरे के बाहर खड़े होकर युसुफ खान के आगे सिर झुकाते हुए सीने पर हाथ रखा।
“हुक्म बास!” वह बोला और फिर सिर को सीधा कर उसे देखने लगा।
“तेरे को पता है बिल्लू कि मैंने मोती को क्या काम सौंप रखा था?”
कहते हुए युसुफ खान ने दायरे में खड़े व्यक्ति को देखा—जिसका नाम मोती था।
“यस बास।” बिना मोती की तरफ देखे बोला बिल्लू।
“यह अपने काम में कामयाब नहीं रहा। क्या तू वो काम कर लेगा?”
“बास का हुक्म सर-आंखों पर।”
“एक हफ्ते में कर लेगा?”
“आपका हुक्म।”
“अगर नहीं कर पाया तो....”
“जानता हूं बास कि आपको नाकामी पसंद नहीं। अगर नहीं कर पाया तो आकर मोती की जगह खड़ा हो जाऊंगा—और बास जैसी भी सजा देंगे, उसे कबूल कर लूंगा।”
युसुफ खान ने मोती की तरफ देखा।
“आठ दिन पहले तूने भी ऐसा कहा था। कहा था न?”
मोती के गले से बोल नहीं फूटा। उसके गले की घण्टी जोरों से उछलकर गिरी—होंठ फड़फड़ाकर रह गये।
“अगर तब तू पंद्रह दिन मांगता तो मैं इन्कार नहीं करता—मगर तूने पूरे भरोसे से कहा था कि तू आठ दिन में काम कर लेगा। और अब तू नाकामी का बुर्का ओढ़े मेरे सामने खड़ा है।”
मोती की बोलती बन्द।
होंठ पुनः फड़फड़ाये। गले की घण्टी फिर से उछलकर गिरी।
“बिल्लू को बता—इन आठ दिनों में तूने क्या-क्या किया। कौन-कौन से रास्ते पर चला तू।” युसुफ खान गुर्राया।
चेहरे पर राख पोते मोती ने बिल्लू की तरफ गर्दन घुमाई और सब कुछ बता दिया।
“और याद कर।” उसके चुप होते ही बोला युसुफ खान— “हो सकता है कुछ छूट गया हो।0
“न-हीं बाप.....म.....मैंने जो जो हाथ पैर मारे....सब बता दिये।” मोती थर्राये स्वर में बोला।
युसुफ खान ने एक गहरी सांस छोड़ी।
“तूने वाकई बहुत मेहनत की थी मोती।” वह बोला—“दिमाग से भी काम लिया। लेकिन कामयाब नहीं हो पाया तू। और मुझे कामयाबी के अलावा कुछ भी पसंद नहीं। इसलिये तेरे को सजा देना मेरी मजबूरी है, क्योंकि युसुफ खान अपने बनाये कानून से हट नहीं सकता। गुड बाई।”
कहने के साथ ही उसने अपने सिंहासन के दायें हत्थे पर लगे बटनों में से एक बटन दबा दिया।
तुरंत मोती के चारों तरफ फैला दायरा एकदम से एक तरफ से नीचे को ऐसे लटक गया जैसे उसके एक स्थान पर कब्जे लगे हों और वो उसके सहारे लटका हो।
मोती के होठों से एक तेज चीख निकली और वह पहले तो गिरा—फिर फिसल कर फर्श के नीचे गायब हो गया—जहां तेजाब से भरा एक बहुत बड़ा टैंक बना था।
मोती सीधा तेजाब में जा गिरा।
इधर—दायरा फिर से अपने स्थान पर आ गया।
अब कोई भी नहीं कह सकता था कि उस स्थान के नीचे मौत का ऐसा कुंआ है—जिसमें गिरने के बाद जिन्दा बचने का कोई चांस नहीं।
लाश क्या हड्डियां तक गायब हो जाती हैं।
युसुफ खान ने बिल्लू की तरफ देखा—जिसके चेहरे पर कोई भाव नहीं था। बिल्कुल सपाट था उसका चेहरा।
जैसे कुछ हुआ ही न हो।
“तूने देखा बिल्लू?” युसुफ खान बोला।
“यस बास।” सपाट लहजे में बोला बिल्लू।
“अब बोल—क्या कहता है?”
बिल्लू के होठों पर गम्भीर मुस्कान फैल गई।
“कहना क्या है बास—आपने जो हुक्म दे दिया, सो दे दिया।”
“अगर और वक्त चाहिए तो अभी बता दे।”
बिल्लू की मुस्कान तेज हो गई।
“अगर मैं एक सप्ताह में काम नहीं कर पाया तो वो पंद्रह दिन में भी पूरा नहीं होगा बास। एक सप्ताह ज्यादा मांगने का यही मतलब होगा कि मुझे अपनी जिन्दगी से ज्यादा प्यार है। और मैं ऐसा हरगिज नहीं चाहूंगा कि आपके दिल में मेरे प्रति ऐसी कोई बात उभरे।”
“शाबास।” युसुफ खान खुश हो गया—“मुझे तुमसे ऐसे ही जवाब की उम्मीद थी।”
बिल्लु कुछ नहीं बोला—बस सीने पर हाथ रखकर सिर को झुकाया और फिर सीधा हो गया।
“अब निकल—और काम पर लग जा। तेरा वक्त शुरू होता है अब—”
कहते हुए युसुफ खान ने अपनी कलाई घड़ी पर नजर मारी।
बिल्लू ने एक बार फिर से सिर झुकाया और हाल के मेन गेट की तरफ मुड़कर कदम बढ़ा दिये।
उसके जाते ही युसुफ खान ने अपने दाईं तरफ दीवार पर देखते हुए सिंहासन के हत्थे पर लगे बटनों में से एक बटन को दबाया।
तुरंत दीवार पर एक बड़ी स्क्रीन रोशन हो गई।
युसुफ खान ने एक और बटन दबाया।
स्क्रीन पर एक बहुत बड़े टैंक का दृश्य उभरा, जिसमें भरे तेजाब में एक लाश तैरती नजर आ रही थी। लाश से धुंआ उठ रहा था और वह काफी गल चुकी थी। वह मोती की लाश थी।
“बेचारा!” कहकर युसुफ खान ने एक गहरी सांस छोड़ी और स्क्रीन को ऑफ कर दिया।
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