कफन कम पड़ जायेंगे
सुनील प्रभाकर
“सभी बस्ती वालों...कान खोलकर सुनो...भले ही इस लड़की की शादी अभी होकर निपटी हो, लेकिन एस० पी० साहेब की लिस्ट में इसका नाम सबसे ऊपर था...।”
“और तुम तो जानते ही हो...।” घोड़े पर सवार दूसरा रायफलधारी सिपाही लम्बी मूंछों को ताव देते हुए बुलन्द स्वर में बोला—“जो लड़की या औरत हमारे साहब की लिस्ट में चढ़ जाती है, उसे साहब के बिस्तर पर भी चढ़ना पड़ता है।”
“हम इस लड़की को एस० पी० साहेब की कोठी पर ले जा रहे हैं...।” तीसरा घुड़सवार सिपाही गर्जा—“यदि कोई हमारे रास्ते की दीवार बनने की चेष्टा करेगा, हम उस दीवार की एक-एक ईंट बिखेर देंगे।”
“अब इतनी बकवास क्यों कर रहा है टुम...।” बन्दर जैसे लाल-भभूके चेहरे वाला दरोगा रिवॉल्वर लहराते हुए बोला—“नीचे उतरकर दुल्हन को उठाकर हमारी गाड़ी में लेकर आओ...बी क्विक...।”
पांचों सिपाही घोड़ों से उतरकर भय व आतंक की शिकार दुल्हन की तरफ बढ़े।
“नहीं...!” अचानक ही दूल्हे ने अपना सेहरा नोंचा और सिपाहियों के सामने किसी दीवार की भांति ही तनकर खड़ा हो गया। वह म्यान से तलवार निकालकर लहराते हुए गुर्राया—“कोई भी मेरी आरती को हाथ नहीं लगायेगा—आरती मेरे बचपन का प्यार है—बड़ी ही मुश्किल से विवाह हुआ हमारा—यदि तुम लोगों ने एक कदम भी आगे बढ़ाया तो काटकर रख दूंगा...।”
सिपाहियों ने सकपकाकर एक-दूसरे को देखा।
विवाह में सम्मिलित लोगों के चेहरे फक्क पड़ गये—विशेषकर दूल्हा-दुल्हन के परिवारजनों की स्थिति दयनीय हो चली—उनकी आंखों में आशंकाओं की परछाईयां थिरक उठीं!
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“पागल है साला...ही...ही...ही...।”
विवाह मण्डप के बाहर वह पत्तलों के ढेर पर बैठा बची-खुची जूठन खा रहा था।
उसके मैल से काले पड़े शरीर पर जो कुर्ता-पायजामा थे, वो चिथड़ों में परिवर्तित थे—सिर व दाढ़ी के लम्बे बाल धूल से सने और आपस में उलझे हुए थे। आंखों की कटोरियों में मानो खून के कतरे तैर रहे थे।
कुल मिलाकर बड़ा ही भयावह था वो!
“पागल है भई...पागल....।” पत्तलों का ढेर सिर पर रखकर नाचते हुए वह गाने के भाव से चीखने लगा—“जिन बहादुर अंग्रेजों ने...ओ...इस देश को अपना गुलाम बना लिया...ओ...पागल है साला...ही...ही...ही...।”
“चुप्प...!” अंग्रेज दरोगा उस पर चीखा—“भाग जा...नहीं टो हम गोली से उड़ा देगा—।”
जैसे चाबी से चलने वाले खिलौने की चाबी खत्म हो गई हो—वह पागल जैसे का तैसा पत्थर के बुत की भांति स्थिर रह गया।
सिर पर रखी पत्तलों से बही सब्जी ने उसके चेहरे को और भी अधिक भयानक बना दिया।
फिर वह सिर पर पैर रख कर एक दिशा में भागता ही चला गया।
“देखटे क्या हो...?” दरोगा सिपाहियों पर गर्जा—“इस दूल्हे को जान से खटम करके दुल्हन को हमारे पास लाओ—।”
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“पागल हुए हो क्या बेटे..?” दूल्हे का बूढ़ा बाप उसे बलात् अपनी तरफ खींचते हुए बोला—“क्यों अपनी जान खतरे में डालते हो—मैं तुम्हारी शादी किसी दूसरी लड़की से...।”
“छोड़िए मुझे...!” दूल्हे ने झटके के साथ अपनी बांह छुड़ाई और भभके हुए चेहरे के साथ बोला—“आरती मेरी धर्मपत्नी बन चुकी है। मैं आरती के बिना जीवित नहीं रह सकता। जब तक मेरे हाथ में तलवार है, कोई भी माई का लाल मेरी आरती को मुझसे छीनकर नहीं ले जा सकेगा। मैं अपनी जान भी...आह...।”
वह गला फाड़कर चीखा।
सिपाही ने रायफल के शीर्ष पर लगी संगीन उसके पेट में पूरी भोंक दी और उसे दही बिलौने वाली 'रई' की भांति ही घुमाते हुए क्रूरतम् भाव से बोला—“जिस शक्ति ने सारे देश को अपना गुलाम बना लिया, तू उसी से टकराने चला था बेटे! जिस लड़की पर हमारे साहब की नीयत डोल गई, उसे साहब की वासना की शिकार होने से दुनिया की बड़ी से बड़ी शक्ति भी नहीं रोक सकी। तू शायद अंग्रेजी सरकार से टकराने का हश्र नहीं जानता। इधर तेरी चिता जलेगी और उधर तेरी माशूका के साथ एस० पी० साहब सुहागरात मना रहे होंगे। दुल्हन को जीप में बिठाओ...!”
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ढम...ढम...ढम...!
नक्कारे की आवाज ने कोठरी में उपस्थित दसों नकाबपोशों को बुरी तरह चौंकाया!
“क्रान्ति का फरिश्ता...।” एक नकाबपोश चिहुंकते हुए बोला—“फरिश्ता खतरे की घड़ी में ही इस तरीके से नक्कारा बजाता है।”
“चलो, जल्दी से चलो...।” दूसरा कोठरी से बाहर की तरफ दौड़ते हुए बोला। वे सभी गुफा जैसे बन्द गलियारे को पार करके बड़े-से कमरे में पहुंचे।
कमरे में मशाल की पीली रोशनी थी।
सबने दायां हाथ फैलाकर सिर को झुकाया और संयुक्त स्वर में बोले—“वन्दे मातरम्...।”
“जय भारती—।” काले लबादे वाले ने अंगारों जैसी आंखों से उन सबको घूरते हुए भर्राये-से स्वर में अभिवादन का उत्तर देने के साथ-साथ एक बड़ी ही विचित्र हरकत की—उसने दस्ताने में छिपी दायें हाथ की उंगलियों से बायें हाथ के अंगूठे को विपरीत दिशा में मोड़कर कलाई से कतई चिपका दिया—उसके ऐसा करने से 'करड़...करड़' की आवाज हुई।
“मां भारती के सपूतों...।” क्रान्ति का फरिश्ता सभी नकाबपोशों को घूरते हुए बोला—“एस० पी० निकोलसन के अत्याचार बर्दाश्त की सीमा से बाहर हुए जा रहे हैं। हमें विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ हैं कि दरोगा जार्ज अपने कुछ सिपाहियों के साथ चौहानों की बस्ती में गया है। राम लाल की बेटी को उठाने की नीयत से—।”
“हम ऐसा नहीं होने देंगे क्रान्ति के फरिश्ते।” एक नकाबपोश क्रोध से थरथराते हुए जोशीले स्वर में बोला—“कोई अंग्रेज हमारी किसी बहन की लाज लूटे...ये हमसे सहन नहीं होगा।”
“हम एस० पी० निकोलसन की बोटी-बोटी काटकर कुत्तों को खिला देंगे। वो पापी हमारी बहुत-सी बहनों की लाज लूट चुका है।”
क्रान्ति का फरिश्ता कसमसाते हुए बोझिल स्वर में बोला—“एस० पी० निकोलसन का भी काम तमाम किया जायेगा नम्बर टू...परन्तु अभी हमारे पास न तो पर्याप्त सदस्य हैं, और न ही हथियार। अभी तो तुम लोग रामलाल की बेटी को बचाओ।”
“वन्दे मातरम्—।” वे सभी दोनों हाथों को हवा में लहरा कर एक साथ चीखे।
“जय भारती—।”
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“भगवान के लिए मुझ पर दया करो...।” दुल्हन बनी आरती दूल्हे के निश्चेष्ट शरीर से जोंक की भांति लिपटकर बिलखते हुए बोली—“तुमने मेरे पति को मार डाला। मैं अपने सुहाग की चिता के साथ जलकर सती होना चाहती हूं।”
निर्दयी सिपाहियों ने उसे दूल्हे से अलग किया और जीप की तरफ घसीटने लगे—उनमें से एक वहशी भाव से हंसते हुए बोला—“एस० पी० साहब तेरे से शादी करके अपने मुल्क में नहीं ले जायेंगे। सुहागरात मनाकर धक्का दे देंगे। फिर तू अपने पति की चिता में कूदकर सती हो जाना...कोई नहीं रोकेगा तुझे...।”
“कुछ तो शर्म करो कमीनों...।” अचानक ही आरती रोना-गिड़गिड़ाना भूलकर विक्षिप्त भाव से चीखी—“भारत मां की कोख से जन्म लेकर भी तुमने उन लोगों की वर्दी पहनी है, जिन्होंने धोखे से हमला करके राजा साहब को बन्दी बना लिया और भारत नगर पर अपना शासन जमा लिया। तुम जैसे गद्दारों के कारण ही भारत नगर ने गुलामी की जंजीरें पहनी हैं। विदेशियों का थूक चाटने वालों...तुम्हारा खून पानी हो चुका है। तभी तुमने अपनी ही बहन-बेटियों को विदेशियों की वासना का शिकार बनाने में सहयोग दिया। धिक्कार है उस कोख पर...जिसने तुम जैसे पापियों को जन्म...आह...आह!”
“साली...कुतिया...।” एक सिपाही उसके पेट में बूट की ठोकर मारते हुए गुर्राया—“हमारी मां को गाली देती है—!”
“गाली तो तुम लोगों ने दी है अपनी मां को...।” वह पीड़ा को पीते हुए फंसे-से स्वर में बोली—“गोरों का साथ देकर...उनकी गन्दी वर्दियां पहनकर। यदि तुम्हारे खून में हिन्दुस्तानी बाप के खून का एक कतरा भी होता तो अंग्रेजों का थूक चाटने की बजाय उनका खून पीते। उनकी वर्दी पहनने से बढ़िया कफन ओढकर क्रान्तिकारियों की मौत मरना पसन्द करते। उनके हथियार उठाकर, अपने ही देशवासियों पर अत्याचार ना करके, देशी हथियारों से आजादी की लड़ाई लड़ते; परन्तु...परन्तु तुममें देशभक्ति और इन्सानियत की भावना कहां! तुम्हें तो चांदी के सिक्के और झूठा सम्मान चाहिए। यदि जरूरत पड़े तो...तुम जैसे शैतान चांदी के सिक्कों की खातिर अपनी मां-बहनों की इज्जत भी लुटवा...।”
“नहींऽऽऽ।” जीप में सवार दरोगा एक सिपाही को आरती के पेट में संगीन भौंकते देखकर चीखा—“क्या करता है यू रास्कल? ये लड़की मर गया टो...एस० पी० साहब टुम्हारी खोपड़ी में सुराख कर देगा। टुम्हारी डाटर या सिस्टर को रेप कर डालेगा। रायफल कन्धे पर वापस रखना मांगटा है। जल्दी से इस लड़की को हमारी जीप में लेकर आओ। एस० पी० साहब हमारी वेट कर रहा होगा।”
उधर दूल्हे के शरीर में हरकत हुई।
किसी रबर के बबुए की भांति ही वो जमीन से उछलकर खड़ा हुआ और तलवार को दोनों हाथों से उठाए हुए दौड़ पड़ा।
“ओह नो...!” दरोगा हड़बड़ाकर होलेस्टर से रिवॉल्वर निकालते हुए चीखा—“ वो टुम लोगों को मारने को आटा है! अपनी जान बचाओ...उसको किल करो...शूट हिम...आई से शूट हिम।”
सिपाही दुल्हन को छोड़कर वापिस घूमे।
परन्तु तब तक मौत उनके सिर पर पहुंच चुकी थी। मौत के करीब पहुंचने पर भी न जाने दूल्हे में कहां से दैविक शक्ति आ गई थी? देखते-ही-देखते उसने पांचों सिपाहियों की गर्दनें घड़ से जुदा कर डालीं। सिपाही बिना चीखे ही जमीन पर जा गिरे!
धांय...धांयऽऽऽ!
तभी दो गोलियां उसकी पीठ में आ धंसीं।
“आहऽऽऽ!” तलवार को थामे-थामे ही वो लड़खड़ाया—उसने सुर्ख पड़ चली आंखों से अपनी हतप्रभ दुल्हन को निहारा और फिर आंखें मूंदकर तलवार को हवा में उल्टी करके तेजी के साथ अपनी दुल्हन के पेट में उतार दी।
दुल्हन बड़े जोरों से चीखी...तलवार उसके पेट को चीरती हुई जमीन के भीतर धंस गई थी!
“आ...र...ती—!” दुल्हन के ऊपर ‘धप्प-से’ गिरकर वह टूटती सांसों के साथ बोला—“यदि...मैं...ऐसा...ना...करता...तो...वो...एस०...एस०...पी०...तुम्हें...कलं...कित कर देता...आह...अ...ग...ले...जन्म...में मि...मि...।
बस—सांसों की तारें टूट गईं!
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