जादू भरा जाल
हवा का तीव्र झोंका आया।
लाइटर की लौ ने फड़फड़ाकर दम तोड़ दिया।
वातावरण पर पुनः अंधकार काबिज हो गया मगर अपने जेहन में पंकज को जोरदार आतिशबाजियां छूटती महसूस हो रही थीं। ऐसा लग रहा था जैसे दिमाग में सैंकड़ों अनार, फुलझड़ियां और महताब इकट्ठे होकर भड़क उठे हों।
हालांकि अंधेरा इतना था कि सुनयना के वीभत्स, भयानक और डरावने चेहरे को देख नहीं सकता था परन्तु आंखों के समक्ष निरन्तर वही चेहरा चकरा रहा था।
बाग में घने और विशाल वृक्षों से घिरा खड़ा था वह। हवा की सांय-सांय करती ध्वनि अंधेरे का कलेजा चीरे दे रही थी।
विश्वास नहीं हो रहा था कि लाइटर की रोशनी में कुछ देर पहले जो कुछ देखा है, वह सच हो सकता है। भला सुनयना जीवित कैसे हो सकती थी?
“नहीं!” उसका समूचा जेहन एक साथ चीखा—“सुनयना किसी हालत में जीवित नहीं हो सकती।”
“फ-फिर अभी-अभी मैंने क्या देखा था?”
पंकज बड़बड़ा उठा।
दिमाग ने कहा—“तेरा वहम होगा।”
और सचमुच!
पंकज को लगा कि जो कुछ उसने लाइटर की रोशनी में देखा था, वह उसका वहम ही रहा होगा—पुष्टि करने के लिए लाइटर ऑन करना चाहा।
चिंगारी-सी चमककर लुप्त हो गयी।
पंकज ने कई बार प्रयास किया, हर बार हश्र यही।
झुंझला उठा वह और अभी ठीक से झुंझला भी नहीं पाया था कि वातावरण में खिलखिलाहट की आवाज गूंजी।
ठीक ऐसी, जैसे कब्र फाड़कर चुड़ैल खिलखिला उठी हो।
पंकज के जिस्म का रोयां-रोयां खड़ा हो गया।
स्टैचू में तब्दील हो चुका था वह।
पथराई आंखों से सुनयना के साये को जमीन से उठकर खड़ा होते देखा—कान अभी भी उसके मुंह से निकलने वाली कब्रिस्तानी खिलखिलाहट को सुन रहे थे और फिर सुनयना ने खिलखिलाहट के बीच कहा—“तुम मुझे बेहोश हो गयी समझे थे न—हा...हा.... हा.....हा। ठीक इसी तरह उस दिन बस में तुम इस वहम का शिकार हो गये कि मैं मर गयी हूँ।”
“न-नहीं, तुम सुनयना नहीं हो सकतीं।” पंकज के पथराये होंठों से ये शब्द स्वतः विस्फुटित हुए—“म-मैं किसी हाल में नहीं मान सकता कि तुम सुनयना हो।”
“मत मानो।” उसके सामने लहराते साये ने कहा—“दबाव कौन डाल रहा है?”
“ल-लेकिन!” पंकज की हालत विचित्र थी—“त-तुम्हारा चेहरा....।”
“हा-हा-हा!” सुनयना ने ऐसा अट्टहास लगाया कि पंकज की आवाज दबकर रह गयी, बोली—“तुम्हें अपने जीवित होने का यकीन दिलाने की जरूरत मुझे तब तो होती जब यह अहसास होता कि मेरी हत्या के मामले में तुम अपने घर वालों के साथ नहीं थे मगर अब, जब कि जान चुकी हूं कि पहलगाम के ‘होटल पहलगाम’ में हनीमून मनाते वक्त तुमने जो कुछ कहा था वह सब झूठ था, फरेब था—सीधी-सादी सुनयना को ठगने का षड्यंत्र था—अब भला तुम्हें अपने जीवित होने का यकीन दिलाने से क्या लाभ?”
“ह....होटल पहलगाम?” पंकज की आवाज कांप उठी थी—आंखें सुकड़कर गोल हो गयीं, सुनयना के शब्दों ने उसके जेहन में अनेक सवाल पनपा दिये थे—जवाब हासिल करने के लिए सवाल किया—“होटल पहलगाम में मैंने तुमसे क्या कहा था?”
इस बार सुनयना के मुंह से पहले सभी अट्टहासों से कहीं ज्यादा बुलन्द अट्टहास फूटा, बोली—“तुम्हारा सवाल बता रहा है मेरे बेवफा पति कि तुम मुझे सुनयना मान चुके हो।”
पंकज हड़बड़ा गया, बोला—“म-मेरा मतलब ये था, तुम्हें कैसे मालूम कि पहलगाम होटल में मैंने सुनयना से क्या कहा था?”
“सोचो मेरे देवता, दिमाग के सभी खिड़की-दरवाजे खोलकर सोचो—अगर मैं सुनयना नहीं हूं तो वह सब कैसे पता जो तुमने केवल सुनयना से कहा था?” व्यंगभरी खिलखिलाहट के साथ सुनयना कहती चली गई—“और फिर मैं केवल होटल पहलगाम की ही बात क्यों करूं—उस एक-एक क्षण की बात क्यों न करूं जो हम दोनों ने एक साथ कश्मीर की वादियों में गुजारे थे—डल लेक के शिकारे में, झेलम के हाउस बोट में, चन्दनबाड़ी के बर्फ वाले पुल पर और शंकराचार्य के मन्दिर में तुमने मुझसे जो कुछ कहा था उस सबका एक ही सार था—यह कि तुम अपनी पत्नी के रूप में मुझे पाकर धन्य हो गये हो—कम-से-कम हजार बार यह कहा था कि तुम मेरे लिए अपनी जान तक दे सकते हो और मैंने हर बार घबराकर तुम्हारे मुंह पर हाथ रखा था, कि ऐसा मत कहिए, अगर मौत आपकी तरफ झपटेगी तो मैं आगे बढ़कर उसे अपने गले लगा लूंगी—आप न रहे तो भला मेरा इस संसार में क्या रह जायेगा—बोलो, बोलो पंकज.....कश्मीर की वादियों में हमारे बीच बार-बार यही बातें हुई थीं या नहीं?”
“हां!” पंकज का दिमाग बुरी तरह झनझना रहा था—“ये बातें हुई थीं लेकिन....”
“लेकिन बस-लूट की घटना में जो कुछ हुआ वह सारा-का-सारा कश्मीर की वादियों में तुम्हारे द्वारा कहे गये शब्दों के विपरीत था।” कहती-कहती सुनयना अपने दांत पीसने लगी—“मैं उस वक्त सोच भी नहीं सकती थी कि वह घटना साधारण बस लूट की घटना नहीं घट रही है—बल्कि दहेज की खातिर मेरी हत्या के षड्यंत्र को अमली जामा पहनाया जा रहा है।”
“नहीं!” पंकज चीख पड़ा—“यह झूठ है।”
सुनयना गुर्रा उठी—“यह झूठ है कि दहेज की खातिर कुन्दा के हाथों मेरी हत्या कराई गयी?”
“हां सुनयना, अगर तुम सचमुच सुनयना हो तो मुझे आश्चर्य है कि तुम मेरी ऐसी कल्पना कैसे कर सकती हो कि मैंने दहेज की खातिर तुम्हारी हत्या का प्रयास किया था—जरा सोचो, अगर वे गुण्डे हम ही से मिले हुए होते तो उनमें से एक मेरे पेट में चाकू क्यों घुसेड़ता?”
“यही एक सवाल था जिसने मेरा एक साल तबाह कर दिया—हर बार यही सोचकर डबल माइन्ड हो जाती कि जो कुछ कुन्दा और उसके साथियों ने किया, अगर वह तुम लोगों के इशारे पर किया था तो तुम्हारे पेट में इतनी बेरहमी से चाकू क्यों घुसेड़ा गया और अब तुम भी इस एकमात्र दलील के बूते पर मुझे भरमाना चाहते हो, पर मैं किसी भ्रम का शिकार होने की स्थिति में नहीं हूं मिस्टर पंकज—इसलिए नहीं हूं क्योंकि एक साल तक बड़े यत्न से खुद को गुप्त रखकर मैंने झक नहीं मारी है बल्कि हकीकत से वाकिफ हो चुकी हूं—मैं इस ऊहापोह से बाहर निकल चुकी हूं कि मेरी हत्या का प्रयास दहेज की खातिर किया गया था या नहीं—बल्कि यह कहा जाये तो ज्यादा उपयुक्त होगा कि अब तो मैंने अपने हत्यारों से रिवेंज भी लेना शुरू कर दिया है।”
“र-रिवेंज.....कैसा रिवेंज?”
“तुम्हें घर पहुंचने पर मालूम होगा मेरे राजा कि तुम्हारी बहन मर चुकी है।”
“क्-क्या ?” पंकज उछल पड़ा—“क्या कहा तुमने ब-बिन्दु।”
“क्या तुमने उसकी चीख की आवाज नहीं सुनी थी?”
“च-चीख की आवाज भी सुनी थी और उससे पहले गोली चलने की भी मगर उस सबका मतलब ये कहां हुआ कि बिन्दु मर गई है—सम्भव है कि हत्यारे का निशाना चूक गया हो या बिन्दु केवल जख्मी.....”
“एक साल के अन्दर जो ट्रेनिंग मैंने ली है, उसके बाद न मेरा निशाना चूकने वाला है और न ही मैं जिस्म के किसी ऐसे अंग पर गोली मारती हूं जिससे शिकार जख्मी होकर रह जाये।”
“क्-क्या यह कहना चाहती हो कि तुमने बिन्दु को मार डाला है?”
“हां मेरे बेवफा पति, पूरे गर्व के साथ मैं यही कहना चाहती हूं कि आज मैंने अपने हत्यारों में से एक को मिटा डाला और तुम्हें साफ-साफ बता देना चाहती हूं कि छोङूंगी एक को भी नहीं....गिरधारी लाल, कमला देवी, बादल, कुन्दा और तुम—एक-एक करके सबके परखच्चे उड़ा दूंगी मैं—मेरी हत्या की कीमत तुम सबको चुकानी होगी और तुम....तुम सबसे आखिर में मरोगे पंकज— मेरी हिटलिस्ट का अंतिम नाम तुम इसलिए हो क्योंकि तुमने एक नहीं दो जुर्म किये हैं—तुम्हारे मां-बाप, भाई-बहन और कुन्दा ने तो केवल मेरी हत्या का ही प्रयास किया मगर तुम विश्वासघात के मुजरिम भी हो—तुम्हें ऐसी सजा मिलेगी मेरे प्यारे पति कि फिर कोई पति दहेज के लिए अपनी पत्नी की हत्या नहीं करेगा—पहले तुम अपने परिवार के एक-एक मेम्बर को मरता देखने की सजा भोगोगे और उसके बाद देखोगे अपनी आंखों से अपनी मौत का मंजर—।”
पंकज हक्का-बक्का रह गया।
कई क्षण तक तो यही न सूझा कि उसे क्या कहना चाहिए—दरअसल सुनयना ने अंतिम लफ्ज जिस लहजे में कहा था वह इतना ख़तरनाक था कि उसके समूचे जिस्म में सनसनी दौड़ गयी।
किंकर्तव्यविमूढ़-सा खड़ा रह गया वह—।
जबकि हिंसक शेरनी की-सी गुर्राहट वाले अंदाज में सुनयना कहती चली गयी—“जाओ पंकज, घर जाकर सबसे पहले अपनी बहन की लाश को देखने की सजा भोगो।”
एकाएक पंकज दृढ़तापूर्वक गुर्राया—“मैं तुम्हें इतनी आसानी से अपने हाथ से नहीं निकलने दूंगा।”
“मतलब?”
“अगर तुमने यह सोचा था कि कश्मीर की दो-चार बातें बताने मात्र से मैं तुम्हें सुनयना समझ बैठूंगा तो निश्चित रूप से तुम मूर्खों की दुनिया से आई हो—तुम्हारे सुनयना होने का कोई सवाल इसलिए नहीं उठता क्योंकि चिता पर लिटाने के बाद उसके जिस्म को अग्नि मैंने खुद दी थी—अब सवाल ये उठता है कि खुद को सुनयना साबित करके आखिर तुम सिद्ध क्या करना चाहती हो? और फिर, अगर तुमने यह सोचा था कि पंकज यह सुनने के बावजूद तुम्हें हाथ से निकल जाने देगा कि तुमने बिन्दु को मार डाला है तो निश्चित रूप से तुम इस दुनिया के बेवकूफों की सिरमौर हो—नहीं बेवकूफ औरत, तुम यहां से बचकर नहीं जा सकतीं।”
सुनयना जोर से हँसी, बोली—“क्या रोकोगे मुझे तुम?”
“हाँ, मैं रोकूंगा तुम्हें!” कहने के साथ उसने चीते की मानिन्द सुनयना के साये पर जम्प लगाई।
गजब की फुर्ती के साथ सुनयना एक तरफ हट गयी।
पंकज मुंह के बल ज़मीन पर जा गिरा।
सुनयना ठीक उसके पीछे खड़ी कहकहे लगा रही थी—पंकज बिजली की-तेजी से खड़ा हुआ—पुनः सुनयना पर झपटा परन्तु सुनयना के दायें बूट की ठोकर फड़ाक से पंकज के चेहरे पर पड़ी।
पंकज चीख के साथ वापस उलट पड़ा।
और फिर, हुआ ये कि पंकज के सारे भ्रम टूट गये।
सोचा था कि एक औरत भला उसका क्या मुकाबला करेगी?
मगर!
उस औरत ने जूडो-कराटे और कुंगफू का ऐसा शानदार प्रदर्शन किया कि पंकज उसके जिस्म के किसी हिस्से को छू तक न सका—ऐसे-ऐसे दांव इस्तेमाल किये उसने, जिनके बारे में पंकज बेचारे ने तो कभी सुना तक नहीं था और उन्हीं सबका परिणाम ये हुआ कि अंततः पंकज की आंखों के सामने अंधकार की अभेद्य चादर फैलती चली गई—सम्पूर्ण शक्तियों को समेटने के बावजूद खुद को चैतन्य न रख सका वह।
और !
उसे बेहोश होते केवल सुनयना की दो नहीं बल्कि चार आंखों ने देखा था। दो आंखें वे थीं जिनका सम्पूर्ण जिस्म एक वृक्ष के मोटे तने के पीछे छुपा था।
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मेरे जिन प्रेरक पाठकों ने ‘दहेज में रिवॉल्वर’ पढ़ा है वे भले ही ‘जादू भरा जाल’ के उपरोक्त दृश्य को पढ़कर रोमांचित हुए हों परन्तु जो पाठक ‘दहेज में रिवॉल्वर’ नहीं पढ़ पाये, वे निश्चित रूप से थोड़ा अटपटा महसूस कर रहे होंगे—ऐसा ही अटपटापन ‘जादू भरा जाल’ के आगामी दृश्यों को पढ़कर महसूस न करें, इसलिए अगले चैप्टर में ‘दहेज में रिवॉल्वर’ का संक्षिप्त सारांश दिया जा रहा है—वैसे, ‘जादू भरा जाल’ को आगे पढ़ने से पहले यह सारांश उन पाठकों को भी पढ़ लेना चाहिए जिन्होंने ‘दहेज में रिवॉल्वर’ पढ़ा है—क्योंकि यादें अगर ताजा हो जायें तो कथानक का मजा दुगना हो जाता है।
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admin –
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