आग का दरिया
रीमा भारती
होटल मयूर!
अपने आपमें खासा उच्च स्तरीय होटल माना जाता था, जिसकी खूबसूरती, वहां लगी रिफ्लैक्टर लाइटों से अपनी ओर आकर्षित करती थी। उसकी बाहरी दीवारों पर लटकन झालरों से टिमटिमाते छोटे रंगीन बल्ब उस पर हुई नक्काशी में चार चाँद लगाते थे। सबसे ज्यादा उसमें देखने वाली वह चीज थी, जो बरबस ही एकबारगी अपनी ओर देखने के लिए आकर्षित करती थी।
वह चीज थी, मयूर!
यानि होटल मयूर की इमारत के टॉप पर एक कृत्रिम इलैक्ट्रिक मोर जो थिरकता तथा राउण्ड करता हुआ नजर आता था। जिसमें आंखों से लेकर पैर के नाखून तक में तरह–तरह के रंगीन बल्बों का इस्तेमाल किया गया था, जिसके रोशन होते ही उसमें अद्भुत आकर्षण उत्पन्न हो जाता था। जो देखते ही बनता था।
होटल मयूर ग्लैमर की दुनिया यानि मुम्बई के होटलों में सर्वश्रेष्ठ माना जाता था। वहां हाई सोसाइटी के लोग अक्सर लंच अथवा डिनर लेते हुए वहां की वेटेªस के अस्तित्व से लिपटे तंग लिबास, मिनी स्कर्ट, मिडी आदि से झांकते नुमाया जिस्म को निहारकर उनकी शोख अदाओं का भरपूर लुत्फ उठाये बगैर न चूकते थे।
चन्द्र स्योत्सना में होटल मयूर का एक–एक हिस्सा यूं नुमाया हो रहा था मानो किसी खूबसूरत अल्हड़ नवयौवना ने अपने अस्तित्व को पूर्ण रूप से ढांपने की कोशिश की हो परन्तु अपने ऊपर चढ़ते यौवन निखार को फिर भी न छिपा पाई हो। होटल पर जगमगाती झालरों ने मानो किसी के गोरे तन पर सिन्दूर डाल रखा हो। देखने भर से ऐसा लगता था कि कहीं भी किसी रूप में उसके सोलह श्रृंगार में कमी नहीं छोड़ी गई थी।
स्पाई क्वीन रीमा ने खुशगवार रात्रि के बढ़ते समय–चक्र को ध्यान में रखते हुए अपने मस्तिष्क में डिनर हेतु होटल मयूर का खाका बनाया। जहां वह अक्सर आती–जाती रहती थी। यह होटल उन होटलों में से एक था, जहां की डिशें थ्रिल क्वीन रीमा भारती को पसन्द आती थीं।
वहां के मालिक से लेकर कर्मचारी तक उससे भली प्रकार परिचित थे। वे इस बात को जानते थे कि स्पाई रीमा भारती किस शख्सियत और हैसियत की इन्सान है।
स्पाई क्वीन रीमा भारती इस समय होटल मयूर में डिनर ले रही थी। खाना लजीज और उम्दा था। कनखियों से वह अपने आस–पास की टेबिलों पर बैठे व्यक्तियों का भी जायजा ले रही थी, वह देख रही थी कि होटल की वेट्रेस किस तरह अपने हुस्नो–जमाल के साथ ऑर्डर सर्व करने के पश्चात् अपने हुस्नो–शबाब की झलकी दिखाती हुए नाजो–अन्दाज से अपनी टिप वसूलती थीं।
रीमा के लिए यह सब देखना कुछ नया नहीं था। उसने अपने मस्तिष्क को हल्के से जुम्बिश दी, और विचार मग्न हुई कि इस वक्त तो थोड़ा सुकून है। परन्तु अग्रिम मिशन को सौंपने के लिए चीफ मि० खुराना न जाने कब, क्या आदेश दनदना दें, जो कि अपराध जगत के लिए विपदा का रूप धारण करे। दुनिया के कोने–कोने में नित्य ही कोई न कोई सनसनीखेज अपराध होते हैं, जिसमें पुलिस प्रशासन सक्रिय होते हुए भी हाथ मलती रह जाती है, जिससे जरायम की दुनिया को काफी बल मिलता है।
मगर!
इस देश में आई०एस०सी० की नम्बर वन एजेन्ट रीमा भारती के होते हुए भारत सरकार को जरायम के सूरमाओं को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए जरा भी विचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
क्योंकि!
स्वाभाविक है जहां तक पुलिस नहीं पहुंच सकती वहां तक इण्डियन सीक्रेट कोर की हसीना रीमा भारती पहुंच, अपने तपते शोला बदन को देश के दुश्मनों के लिए आग का दरिया बना डालती है।
“क्षमा कीजियेगा मैडम!” एक चिर–परिचित स्वर ने स्पाई क्वीन की तन्द्रा को भंग कर चैंकाया।
थ्रिल क्वीन ने निगाह उठाकर देखा, होटल मयूर की हैड वेट्रेस सुष्मिता सुष्मिता राव शिष्टता के साथ सामने खड़ी थी।
हैड वेटर सुष्मिता राव अपने आपमें बला की खूबसूरती लिए हुए थी। उम्र के हिसाब से वह पैंतीस को पार कर चुकी थी परन्तु खुद को मेकअप से इस कदर ढांपा हुआ था कि एक नजर में कोई भी अपरिचित व्यक्ति उसकी उम्र के विषय में धोखा खा सकता था।
क्योंकि सुष्मिता राव का गठा हुआ जिस्म, उसकी रंगत, नुकीले नैन–नक्श और नुमाया होते ऊपरी हिस्से पर चढ़े बन्धन में विशेष आकर्षण क्षमता थी। जो बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करती थी। रूप–सौन्दर्य समेटे सुष्मिता राव को देख रीमा अठखेलियों का शिकार हुए बगैर न रहती। रीमा उसे सुष्मिता राव की बजाय मिस यूनिवर्स के नाम से सम्बोधित करती थी।
उसकी मदमस्त आंखों में झांकते हुए, आह भरते हुए अपनी दायीं आंख को दबा देती, जिस पर वह रीमा के स्वभाव से परिचित काफी देर तक खुद उसकी अठखेलियों का शिकार बनना पसन्द करती थी।
मगर!
थ्रिल क्वीन का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट करते ही वह कुछ और करीब सरक आयी। कहने लगीµ
“मैं इस बात को जानने और सन्तुष्ट होने के लिए आयी हूं कि मिस करीना की सर्विस से आपको किसी प्रकार की शिकायत तो नहीं हुई?”
“कुशल तो है मिस सुष्मिता राव...? यह बात अब से पहले तो कभी नहीं पूछी गई?”
थ्रिल क्वीन रीमा ने जिज्ञासा भरे स्वर में पूछा।
“इसकी खास वजह है मैडम! दरअसल अब से पहले कभी ऐसा नहीं पाया गया कि आपकी टेबिल किसी और वेट्रेस ने खरीदी हो, ऐसा पहली बार हुआ?”
“मेरी टेबिल किसी ने खरीदी?” रीमा ने विस्मय से पूछा।
सुष्मिता राव ने बात को स्पष्ट करते हुए बताया—
“होटल की वेट्रेसों की ड्यूटी टेबिलों पर मैं लगाती हूं। अक्सर ऐसा होता है, कि किसी अच्छे ग्राहक को देखकर जिससे मोटी टिप मिलने की उम्मीद है, कोई भी वेट्रेस उस वेट्रेस से सौदा करती है जिसकी ड्यूटी उस टेबिल पर होती है। इस किस्म के सौदे अक्सर पांच सौ रुपये से एक हजार रुपये के बीच होते हैं। टेबिल खरीदने वाली वेट्रेस को, ड्यूटी वेट्रेस को नकद भुगतान करना होता है, और सर्विस बजानी पड़ती है। अब यह बात दूसरी है कि ऐसे सौदों में घाटा भी हो जाया करता है।
इस बात को यूं समझिये कि मिस ‘ए’ की ड्यूटी आपकी टेबिल पर है। मिस ‘बी’ की नजरों में यह बात जंचती है कि आपसे उसे अच्छी टिप मिलेगी—मिस ‘बी’ मिस ‘ए’ से कहती है...बेच रही हो टेबिल पांच सौ में। मिस ‘ए’ को लगता है पांच सौ रुपये का नकद फायदा हो रहा है। मिस ‘ए’ के बजाय मिस ‘बी’ की ड्यूटी आपकी टेबिल पर आ जाती है। आपसे मिस ‘बी’ को एक हजार रुपये की टिप मिलती है, इस प्रकार मिस ‘बी’ को पांच सौ रुपये की आय हो जाती है।”
“वण्डरफुल...यहां भी ग्राहकों की मेजों की खरीदो–फरोख्त होती है, यह बात मुझे मालूम न थी।” रीमा ने हल्के–फुल्के मूड में कहा।
“यह सब आपसी समझौते की बात पर निर्भर करता है।” सुष्मिता राव ने आगे बताना जारी रखा—“मैनेजमेंट इसमें दखल नहीं देता। उसकी तो केवल एक ही शर्त होती है...किसी भी रूप में ग्राहक को शिकायत का मौका न मिले, और इस किस्म की शिकायत का मौका ग्राहक को मिलता नहीं...।”
“और ग्राहक को इस बात की खबर भी नहीं होती कि उसकी टेबिल की खरीदो–फरोख्त होती है।” स्पाई क्वीन ने विस्मय से पलकें झपकाकर कहा—“वाह मिस यूनिवर्स...हम बिकाऊ चीज हो गये!”
सुष्मिता राव ने रीमा के कथन पर एक मन्द मुस्कान व्यक्त की और बोली—“मुझे आश्चर्य हुआ आपकी टेबिल मिस करीना ने पूरे दो हजार रुपये में खरीदी—जाहिर है अधिक लाभ की आशा से उसने यह टेबिल खरीदी होगी। उसे यह भी मालूम है कि आप यहां अक्सर आती हैं...अक्सर आने वाले ग्राहक एक बंधी–बंधाई टिप छोड़ने के आदी होते हैं...अक्सर छोटे नोट या सौ–दो सौ, पांच सौ...भला दो–तीन हजार रुपये कोई टिप में क्यों छोड़ने लगा?” सुष्मिता राव ने स्वयं ही नतीजा निकालते हुए कहा—“मेरा ख्याल है कि उसने किसी और मकसद से यह टेबिल खरीदी है...आपसे उसने किसी किस्म की कोई भी बातचीत तो नहीं की...?”
“मेरे ख्याल से नहीं।”
“थैंक्यू!” सुष्मिता राव ने शिष्टता के साथ कहा—“हमारे यहां वेट्रेसों के लिये बस इसी बात की पाबन्दी है कि वे ग्राहकों से व्यक्तिगत समस्या को लेकर कोई बात न करें—उन्हें सिर्फ ऑर्डर लेना और ऑर्डर सर्व करना होता है। ग्राहक के साथ विनम्रता से पेश आना और उसे पूरी तरह सन्तुष्ट रखना भी ड्यूटी में शामिल बात मानी जाती है। कृपया मुझे इजाजत दीजिये...मैं दूर से इस बात पर नजर रखूंगी, कि उसने दो हजार रुपये खर्च करके टेबिल क्योंकर खरीदी?” कहने के साथ ही सुष्मिता आगे बढ़ गयी।
स्पाई क्वीन के मस्तिष्क को सुष्मिता राव की बात शॉक की तरह लगी, वह अपनी बातों से रीमा भारती के कम्प्यूटरीकृत दिमाग में कौतूहलता पैदा कर गयी थी। सुष्मिता को जाता देख स्पाई क्वीन रीमा इस बात पर गौर कर रही थी कि क्या वाकई ऐसा हुआ है—उसकी टेबिल पर सर्विस पाने के लिए दो हजार रुपये खर्च किये हैं, क्यों?
हैड वेट्रेस की बात अपनी जगह सही थी—रीमा टिप में दो सौ से लेकर पांच सौ रुपये तक छोड़ने की आदी थी। इससे ज्यादा छोड़ने की आवश्यकता ही न समझती थी।
हुस्नपरी ने आज करीना पर पूरे पांच सौ रुपये की टिप देने का मन पूर्व से बनाया हुआ था, क्योंकि करीना के जिस्मानी आकर्षण से वह पूर्णत: प्रभावित हो चुकी थी। उसने उसमें अपनी पारखी दृष्टि से वह सब देख लिया था जो किसी अल्हड़ नवयौवना के अस्तित्व में होता है। गोल चेहरा, पतले होठ, और कपोलों पर छाई लाली जिसे देख वह अपना निचला होठ दन्तुलियों में दबा बैठी थी।
सुष्मिता राव आगे की दो–तीन टेबिलों पर रुकी, उनसे सर्विस संतोषजनक होने की जानकारी हासिल की।
स्पाई क्वीन ने अपने मस्तिष्क को हल्के तौर पर झटक दिया और अपनी पैनी नजरें सुष्मिता पर जमाते हुए सोचने लगी—
“वह ऐसा इसलिए कर रही है, ताकि मेरी टेबिल की वेट्रेस को शक न हो कि हैड वेट्रेस मेरी टेबिल पर खासतौर पर पूछने आयी...।”
रीमा भारती ने सुष्मिता राव के उस समय व्यवहार के विषय में सोचा।
कुछ पलों के बाद वेट्रेस ऑर्डर का सामान लेकर आई।
स्पाई क्वीन रीमा भारती ने दिखावटी रूप में अपना व्यवहार सामान्य रखते हुए एक मन्द मुस्कान व्यक्त की।
लेकिन!
सच्चाई यह थी कि स्पाई क्वीन अपनी पैनी नजरों से वेट्रेस के मनोभावों को पढ़ रही थी। उसने महसूस किया कि वेट्रेस के चेहरे पर चौकन्ने होने वाले भाव विद्यमान थे। हैड वेट्रेस का उस टेबिल पर आकर पूछताछ करना, उसे चौकन्ना करने के लिए काफी था।
बात कुछ भी रही हो पर अब तो मामला स्पष्ट रूप से नजर आ रहा था कि उसने अपनी किसी स्वार्थ पूर्ति के लिए ही उसकी टेबिल खरीदी थी।
डिनर लेने के बाद वह पुन: टेबिल पर आई तो रीमा ने इस बात को महसूस किया कि उसकी आंखों में दो हजार रुपये गंवाने की उलझन है।
“एक कॉफी लाना...।” रीमा ने डिनर लेने के बाद उस पर सरसरी मादक नजरें डालते हुए कहा।
“मेम, हॉट या कोल्ड...एस्पे्रसो या क्रीम?” वेट्रेस ने नम्रतापूर्वक पूछा।
“एस्पे्रसो!” रीमा ने कहा।
उसके वहां से मुड़ते ही स्पाई क्वीन ने तेजी के साथ एक नेपकिन निकाला और उसे अपनी जांघ पर रखा। फिर पेन से नेपकिन के पृष्ठ भाग में तहरीर लिखी—
“अगर तुम्हें किसी मसले पर मुझसे बात करती है तो, मेरे बंगले पर आकर बेझिझक मिलो, पता नीचे लिख रही हूं।”
उस नेपकिन को तब जबकि वह बिल लेकर आई, सामान्य रूप से छोड़ी जाने वाली टिप के साथ छोड़ दिया।
नेपकिन सामने था—
उस पर लिखे अक्षर वेट्रेस की निगाहों में आये थे। उसने नेपकिन को मुट्ठी में समेटते हुए कहा—
“थैंक्यू मैडम!”
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